हिन्दू धर्म परंपराओं में शुक्रवार देवी पूजा का
विशेष दिन है। खासतौर पर 20 से शुरू होली तक चलने वाले होलाष्टक के दौरान
22 मार्च को शुक्रवार का योग बना है। होलिकोत्सव के इस विशेष काल में देवी
की उपासना खासतौर पर शनि दोष के अलावा शास्त्रों के मुताबिक शनि की बहन
मानी गई भद्रा के अशुभ प्रभावों को दूर करने का अचूक उपाय माना गया है।
देवी उपासना में नवदुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि का स्वरूप विकराल
होने पर भी मंगलकारी माना जाता है। देवी काल की नियंत्रक मानी जाती है।
इसलिए काल की विषमताओं से पार पाने में देवी की उपासना प्रभावी मानी गई है।
खासतौर पर ग्रह-नक्षत्रों के अशुभ प्रभाव देवी उपासना से शांत हो जाते
हैं।
इसी कड़ी में कालरात्रि की उपासना शनि ग्रह के दुष्प्रभावों से रक्षा
करती है। माना जाता है कि शनि ग्रह के अशुभ योग या दशा जीवन में आर्थिक,
शारीरिक व मानसिक पीड़ा देते हैं। इनसे कई बाधाएं पैदा होती है। इसी तरह
होलिकोत्सव के दौरान भद्रा के अशुभ प्रभावों से पैदा होने वाली अशांति व
कलह को दूर करने के लिए भी देवी का स्मरण बड़ा ही सुखद होता है। ज्योतिष
शास्त्रों में भद्रा 'करण' माना जाता है, जो पंचांग का अहम अंग है और विशेष
स्थितियों में अशुभ फल देता है।
होली तक हर शाम स्नान के बाद देवी की पंचोपचार पूजा गंध, अक्षत, लाल फूल व लाल फल का भोग अर्पित कर करें। धूप व दीप जलाकर लाल आसन पर बैठ नीचे लिखे देवी मंत्र या कालरात्रि के बीज मंत्र का स्मरण कम से कम 108 बार स्फटिक की माला से करें -
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरी
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्।।
कालरात्रि बीजमंत्र - लीं
- मंत्र जप व पूजा के बाद माता की आरती कर क्षमाप्रार्थना कर उसी आसन पर बैठकर प्रसाद ग्रहण करें।
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