मेने लाख चाहा
में हिन्दुस्तान हो जाऊं ..
मेने लाख चाहा
में भारत महान हो जाऊं
मेने लाख चाहा
में इंसान हो जाऊं ..
लेकिन दोस्तों
अफ़सोस के साथ कहता हूँ
में ना हिन्दुस्तान ..न भारत महान
न इंसान बन सका
इतना ही नहीं
में न हिन्दू बन सका
न मुसलमान बन सका
सिर्फ नाम में ही मेरा मजहब था मेरा धर्म था
मेरी जीवन शेली मेरे आचरण में
मेरे धर्म मेरे मजहब के निर्देश
मानवता जीवित रखने का आदेश की पालना नहीं थी
में कोंग्रेसी था ..में भाजपाई था
में लीगी था ,,में बजरंगी था
में तबलीगी था में सुन्नी था में शिया था
में सनातन था ..में संघ था में जमाती था
नहीं था तो बस इन्सान नहीं था
इसीलियें तो में इंसान से शेतान राक्षस बन गया ....
--
akhtar khan akela
में हिन्दुस्तान हो जाऊं ..
मेने लाख चाहा
में भारत महान हो जाऊं
मेने लाख चाहा
में इंसान हो जाऊं ..
लेकिन दोस्तों
अफ़सोस के साथ कहता हूँ
में ना हिन्दुस्तान ..न भारत महान
न इंसान बन सका
इतना ही नहीं
में न हिन्दू बन सका
न मुसलमान बन सका
सिर्फ नाम में ही मेरा मजहब था मेरा धर्म था
मेरी जीवन शेली मेरे आचरण में
मेरे धर्म मेरे मजहब के निर्देश
मानवता जीवित रखने का आदेश की पालना नहीं थी
में कोंग्रेसी था ..में भाजपाई था
में लीगी था ,,में बजरंगी था
में तबलीगी था में सुन्नी था में शिया था
में सनातन था ..में संघ था में जमाती था
नहीं था तो बस इन्सान नहीं था
इसीलियें तो में इंसान से शेतान राक्षस बन गया ....
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akhtar khan akela
वहा वहा कड़वा सच बयान किया है आपने सच में हम एक इंसान ही नहीं बन बाते है तो और क्या बन सकते है कहतें हैं की हम लोगों के पूर्वज बन्दर थे पर आज वही बन्दर कहतें हैं की ये इंसान मेरी संतान थी पर आज ये इंसान ना हो कर बेईमान , लोभी पशु हो गया है
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना
खुशबू