यह अजीब संस्क्रती है ..पहले फूल दिवस वोह भी
केवल गुलाब के फुल का दिवस ..गोभी के फूल की कोई अहमियत नहीं है ..फिर
आलिंगन दिवस ..जादू की झपकी की कोई अहमियत नहीं है ...फिर किस दिवस यानी
मुझे तो लिखने में भी शर्म आती है आप खुद ही समझ गए होंगे ...अब कल फिर
प्रेम दिवस वेलेंटाइन डे वाह भाई वाह खूब मनाओं ....प्यार दो प्यार लो
..वफादारी निभाओ यह सब तो गीता हो या कुरान सभी में तो लिखा है फिर धर्म
संस्क्रती के अनुरूप अपने माता ..पिता ..अपने बुज़ुर्ग ..अपनी पत्नी
..बच्चों ..अपने देश .अपनी संस्क्रती ..से प्रेम क्यूँ नहीं करते क्यूँ
अपने धर्म मजहब को मटियामेट कर रहे हो भाई थोड़ा सुधरो ..थोडा समझो
.....अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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