रांची/जमशेदपुर। नाम सनातन सरदार, आयु 79 वर्ष, उपलब्धि पोटका से
तीन बार विधायक, कार्यकाल वर्ष 1977 से 1990 तक। अविभाजित बिहार में एक
बार मंत्री रहे। यह सब सुनकर दिलो-दिमाग पर तस्वीर उभरती है, किसी भारी
भरकम नेता की, जिनका आलीशान बंगला हो और ठाट-बाट की जिंदगी। लेकिन, पोटका
के रोलाडीह गांव आते ही ख्याल बदल जाएगा, जब आपके सामने होंगे खुद सनातन और
उनका घर। मकान के नाम पर पैतृक संपत्ति के रूप में मिली एक झोपड़ी है।
पेंशन, खेती और छोटे से पोल्ट्री फॉर्म की आय से उनके परिवार का भरण-पोषण
होता है।
पेंशन भी उन्हें पूर्व विधायक होने के नाते मिलता है। खुद की अर्जित कोई चल-अचल संपत्ति नहीं है। मगर, इसका मलाल उन्हें नहीं है। सनातन इस उम्र में सीना की बीमारी से लड़ रहे हैं।
अच्छे आदमी के पास पैसा कहां
तब और आज की राजनीति के सवाल पर सनातन पूरी राजनीतिक व्यवस्था पर सवाल खड़ा करते हैं। बकौल सनातन, 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीता था। फिर भाजपा टिकट पर विजयी हुआ। खुद के पास चुनाव लडऩे के लिए रुपए नहीं थे। कांग्रेस चुनाव का खर्च उठाती थी। सो, कांग्रेस पार्टी में चला गया और तीसरी बार विधायक बना। लेकिन, विचारधारा से समझौता नहीं किया। बिंदेश्वरी दुबे के मंत्रिमंडल में शामिल हुआ। 1990 में कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया। अब यह चलन है कि पैसा दो, टिकट लो। फिर नोट दो, वोट लो। अच्छे आदमी के पास पैसा है कहां? जनता अब ऐसे लोगों को खोज रही है, जो ईमानदार एमएलए या एमपी बने।
अब बिना कमीशन नहीं होता काम
मंत्री या विधायक रहते कभी कमीशन का ऑफर मिला था? इस सवाल पर वे सवालिया लहजे में कहते हैं, किसमें हिम्मत थी इतनी? उन्हें कमीशन देने की बात कोई सोच भी नहीं सकता था। बहुत कड़ाई थी। हमें चिंता रहती थी कि कहीं से अंगुली न उठे, लेकिन अब हालात बदल गए हैं। श्री सरदार कहते हैं कि झारखंड में हर तरफ कमीशनखोरी है। ब्लॉक में कमीशन के कोई काम नहीं होता। लोग एक बार एमएलए या मंत्री बन रहे हैं, कोठी खड़ी कर रहे हैं। ये हालात सुधरने चाहिए।
पेंशन भी उन्हें पूर्व विधायक होने के नाते मिलता है। खुद की अर्जित कोई चल-अचल संपत्ति नहीं है। मगर, इसका मलाल उन्हें नहीं है। सनातन इस उम्र में सीना की बीमारी से लड़ रहे हैं।
अच्छे आदमी के पास पैसा कहां
तब और आज की राजनीति के सवाल पर सनातन पूरी राजनीतिक व्यवस्था पर सवाल खड़ा करते हैं। बकौल सनातन, 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीता था। फिर भाजपा टिकट पर विजयी हुआ। खुद के पास चुनाव लडऩे के लिए रुपए नहीं थे। कांग्रेस चुनाव का खर्च उठाती थी। सो, कांग्रेस पार्टी में चला गया और तीसरी बार विधायक बना। लेकिन, विचारधारा से समझौता नहीं किया। बिंदेश्वरी दुबे के मंत्रिमंडल में शामिल हुआ। 1990 में कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया। अब यह चलन है कि पैसा दो, टिकट लो। फिर नोट दो, वोट लो। अच्छे आदमी के पास पैसा है कहां? जनता अब ऐसे लोगों को खोज रही है, जो ईमानदार एमएलए या एमपी बने।
अब बिना कमीशन नहीं होता काम
मंत्री या विधायक रहते कभी कमीशन का ऑफर मिला था? इस सवाल पर वे सवालिया लहजे में कहते हैं, किसमें हिम्मत थी इतनी? उन्हें कमीशन देने की बात कोई सोच भी नहीं सकता था। बहुत कड़ाई थी। हमें चिंता रहती थी कि कहीं से अंगुली न उठे, लेकिन अब हालात बदल गए हैं। श्री सरदार कहते हैं कि झारखंड में हर तरफ कमीशनखोरी है। ब्लॉक में कमीशन के कोई काम नहीं होता। लोग एक बार एमएलए या मंत्री बन रहे हैं, कोठी खड़ी कर रहे हैं। ये हालात सुधरने चाहिए।
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