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03 दिसंबर 2012

वकीलों के हक की लड़ाई कोन और केसे लडेगा यह तो वक्त ही बताएगा

दोस्तों हर  की तरह इस साल भी कोटा अभिभाषक परिषद के चुनाव आगामी पन्द्राह दिसम्बर को होने जा रहे है अदालत परिसर में करीब पांच सो वकील प्रति दिन आते है लेकिन वोटर एक हजार चार सो से भी अधिक है कोई सिलाई करता है कोई दुद्ध बेचता है कोई क्या करता है किसी को पता नहीं अब भाई कोटा की अभिभाषक परिषद में रोज़ आने वाले पांच सो वकील तो इन बाहरी व्यवसायिक लोगों के आगे अल्पमत में है अभिभाषक परिषद के चुनाव में जीतेगा तो वही जिसे बाहर के लोग चुप चाप आकर वोट डालेंगे तो भाई सही मायनों में तो अभिभाषक परिषद कोटा में कब्जा तो बाहर के लोगों का ही हुआ ना ...खेर कोई बात नहीं चुनाव है जो सदस्य है वोट डालेगा लेकिन जो निर्वाचित होता है वोह क्या करता है ..केसे करता है सभी जानते है ...कोटा अभिभाषक परिषद में वकीलों की कोलोनी के आवंटित प्लोटों की दरे कम कराने का मामला प्रमुख है लेकिन प्रत्याक्षी खामोश है ...कोटा अभिभाषक परिषद हाईकोर्ट बेंच ..रेवेन्यु बोर्ड की बेंच की मांग के आगे खामोश हैं .....यहाँ कोटा न्यायालय परिसर में सुविधाएं उपलब्ध कराने के लियें कोटा के मंत्री शान्ति कुमार धारीवाल ने पचास लाख उनके खुद के विधायक कोष से और पचास लाख नगर विकास न्यास यानी कुल एक करोड़ रूपये के कमाए कराने की घोषणा की थी और धारीवाल के बारे में सभी जानते है के वोह जो कहते है वोह करते ही लेकिन क्या हम उन्हें अपने परेशानी बता कर इस राशि का एक साल में उपयोग भी करा पाए नहीं ना ..कोटा की अदालतों में जज नहीं ..मजिस्ट्रेट नहीं ..बाबु रीडर वक्त पर दावों और परिवादों में रिपोर्ट नहीं करते ..तलबी ..वारंट सम्मन जारी नहीं करते ...तामील कुनिंदा तामिल भी नहीं करवाते अभी हाल ही में खुद अभिभाषकों के एक मुकदमे में नगर विकास न्यास की तामिल अदम तामिल में भेजने का दुस्साहस एक कर्मचारी ने कर दिखाया है तो भाई अभिभाषक परिषद के चुनाव तो है लेकिन समस्याएं जस की तस है हर साल चुनाव होते है बड़े बड़े वायदे होते ही लेकिन सब बेकार कोई काम का इतिहास नहीं हां काम नहीं करने का इतिहास अलबत्ता बन रहा है और यह सिर्फ इसलियें के बाहर के लग अन्दर के नियमित वकीलों पर सियासत के नाम पर हावी है इसलियें अब हार जीत का फेसला वकील सदस्य नहीं बहर के भाई साहब करते है फिर उनके इशारों पर कत्थक तो होना ही है ..मेरा सुझाव था के अगर चुनाव हो तो एक दिन में ही जो लोग उपस्थित हों उनमे से प्रत्याक्षी बने और फिर एक घंटे बाद वोट डलवाए जाए ऐसा कानून बने ऐसे में रेगुलर प्रेक्टिशनर वकील भाई का मनपसन्द लीडर नियुक्त होगा और काम शायद गति पकड़ सके ..वरना खाना ..पीना ..पिकनिक पार्टियाँ ..शोक सभाएं तो कोई भी कर लेगा वकीलों के हक की लड़ाई कोन और केसे लडेगा यह तो वक्त ही बताएगा ..................अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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