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07 दिसंबर 2012

'मुसलमानों से मिली होती तो इस्लाम ना अपनाती'

ईसाई पिता और यहूदी मां की बेटी रेचल साराह लूई ने 15 साल की उम्र में इस्लाम धर्म अपना लिया. लेकिन एक नए मुसलमान का ये रास्ता उनके लिए बहुत मुश्किल निकला. इसलिए नहीं कि उनका अपना परिवार इस फैसले से नाखुश था, बल्कि इसलिए क्योंकि जिस धर्म से वो जुड़ीं, उसी के लोगों ने उन्हें नहीं अपनाया. एक मुसलमान की तरह जीते हुए अब 15 साल गुज़र चुके हैं. रेचल पीछे मुड़कर देखती हैं तो कहती हैं, ''अगर मैं इस्लाम पर किताबें पढ़ने से पहले समुदाय के लोगों से मिली होती तो कभी मुसलमान ना बनती. आखिर इतनी कड़वाहट के बीच कोई क्यों रहना चाहेगा.'' इस बात में गहरा दुख और हताशा दोनों ही छुपी थीं. मैंने टटोला तो रेचल ने कई बातें बताईं. एक पाकिस्तानी मुस्लिम परिवार में जब रेचल की शादी की बात चली, तो रिश्ता ठुकराते हुए उन्होंने कहा कि रेचल उनके जैसी मुसलमान नहीं है. कई साल बाद रेचल ने अपने जैसे एक 'नए मुसलमान' (जिसने इस्लाम अपनाया हो) से शादी की और अब उनकी 6 साल की बेटी है. लेकिन रेचल के मुताबिक उनके पति ही नहीं उनकी बेटी को भी मुसलमान परिवारों के भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने कहा, ''मेरी बेटी आइशा ये सबकुछ बहुत चुपचाप झेल लेती है. एक बार उसे एक मुसलमान परिवार ने कहा कि वो उनके बच्चों के साथ नहीं खेल सकती, तो उसने कहा कोई बात नहीं, और चली आई. जबकि नए मुसलमान परिवारों के साथ वो बड़े प्यार से घुलमिल जाती है.'' रेचल कहती हैं कि अब वो ऐसे परिवारों से ही ज़्यादा मेलजोल रखते हैं

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