राजस्थान में कोंग्रेस भाजपा मिली भगत के चलते स्थानीय निकायों के बुरे हाल है यहाँ चाहे जयपुर नगर निगम हो चाहे कोटा चाहे अजमेर चाहे जोधपुर नगर निगम हो या फिर दूसरी नगर परिषदें पालिकाएं हो सभी जगह पर अफसर शाही हावी है जयपुर में तो कई अफसर बदल गए खुद कोंग्रेसी महापोर ने दर्जनों प्रदर्शन किये लेकिन अफसर शाही है के निर्वाचित निकाय का खून चूसने से रुक ही नहीं रही है ...राजस्थान में निकायों की इस दुर्दशा के पीछे अकेली सरकार या अधिकारी ज़िम्मेदार नहीं है बलके विपक्षी दल भाजपा भी इस मामले में सत्ता का कंधे से कंधा मिलाकर साथ दे रही है ...हम केवल स्वायत शासन विभाग की बात करे कई स्थानों पर क्या किसी भी स्थान पर नगर पालिका अधिनियम के प्रावधानों के तहत ना तो जिला आयोजन समितियों का गठन किया गया है और ना ही अधिनियम की धरा 54 के तहत वार्ड समितियों का गठन किया गया है धरा 54 के प्रावधानों में स्पष्ट है के जिन निकायों की जनसंख्या तीन लाख से अधिक है वहां एक वार्ड में बीस सदस्यों के वार्ड समितियों का गठन होगा और उनका कार्य मिनी पार्षद की तरह होगा ..इसके पीछे कानून की मंशा रही है के एक वार्ड बढ़ा होने से अकेले पार्षद के सम्भालने के बस की बात नहीं रहती इसीलियें उनके प्रतिनिधियों के रूप में सदस्य नियुक्त कर नगरपालिका क्षेत्र में वार्डों के लोगों की समस्या निराकरण के लिए टीम तय्यार करना है लेकिन अफ़सोस राजस्थान में तीन साल से भी अधिक वक्त गुजरने पर भी यहाँ वार्ड समितियों का गठन नहीं किया गया है और हालात बद से बदतर होते जा रहे है हर जिले में अधिकारीयों और निर्वाचित प्रतिनिधियों के बीच सहित युद्ध की कहानिया है खुदा जाने राजिव गांधी का सपना जिसमे उन्होंने देश की निकाय संस्थाओं को स्वायत्त देकर शहर और गाँव के विकास का सपना सजो कर संविधान में तेहत्तर वां संशोधन किया था उस सपने का क्या होगा ..राजस्थान में भाजपा की सरकार होती तो बात और होती लेकिन राजीव गाँधी के विचारों वाली सरकार में भी अगर राजिव गाँधी के सपने को साकार नहीं किया जाता तो फिर तो जनता का भगवान ही मालिक है .......अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
17 नवंबर 2012
राजस्थान में कोंग्रेस और भाजपा की मिलीभगत से निकायों का बुरा हाल ..समितियों का गठन तक नहीं भाजपा चुप
राजस्थान में कोंग्रेस भाजपा मिली भगत के चलते स्थानीय निकायों के बुरे हाल है यहाँ चाहे जयपुर नगर निगम हो चाहे कोटा चाहे अजमेर चाहे जोधपुर नगर निगम हो या फिर दूसरी नगर परिषदें पालिकाएं हो सभी जगह पर अफसर शाही हावी है जयपुर में तो कई अफसर बदल गए खुद कोंग्रेसी महापोर ने दर्जनों प्रदर्शन किये लेकिन अफसर शाही है के निर्वाचित निकाय का खून चूसने से रुक ही नहीं रही है ...राजस्थान में निकायों की इस दुर्दशा के पीछे अकेली सरकार या अधिकारी ज़िम्मेदार नहीं है बलके विपक्षी दल भाजपा भी इस मामले में सत्ता का कंधे से कंधा मिलाकर साथ दे रही है ...हम केवल स्वायत शासन विभाग की बात करे कई स्थानों पर क्या किसी भी स्थान पर नगर पालिका अधिनियम के प्रावधानों के तहत ना तो जिला आयोजन समितियों का गठन किया गया है और ना ही अधिनियम की धरा 54 के तहत वार्ड समितियों का गठन किया गया है धरा 54 के प्रावधानों में स्पष्ट है के जिन निकायों की जनसंख्या तीन लाख से अधिक है वहां एक वार्ड में बीस सदस्यों के वार्ड समितियों का गठन होगा और उनका कार्य मिनी पार्षद की तरह होगा ..इसके पीछे कानून की मंशा रही है के एक वार्ड बढ़ा होने से अकेले पार्षद के सम्भालने के बस की बात नहीं रहती इसीलियें उनके प्रतिनिधियों के रूप में सदस्य नियुक्त कर नगरपालिका क्षेत्र में वार्डों के लोगों की समस्या निराकरण के लिए टीम तय्यार करना है लेकिन अफ़सोस राजस्थान में तीन साल से भी अधिक वक्त गुजरने पर भी यहाँ वार्ड समितियों का गठन नहीं किया गया है और हालात बद से बदतर होते जा रहे है हर जिले में अधिकारीयों और निर्वाचित प्रतिनिधियों के बीच सहित युद्ध की कहानिया है खुदा जाने राजिव गांधी का सपना जिसमे उन्होंने देश की निकाय संस्थाओं को स्वायत्त देकर शहर और गाँव के विकास का सपना सजो कर संविधान में तेहत्तर वां संशोधन किया था उस सपने का क्या होगा ..राजस्थान में भाजपा की सरकार होती तो बात और होती लेकिन राजीव गाँधी के विचारों वाली सरकार में भी अगर राजिव गाँधी के सपने को साकार नहीं किया जाता तो फिर तो जनता का भगवान ही मालिक है .......अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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