इसका एक कारण यह है कि हिन्दू पुराणों में कौए को देवपुत्र माना है। यह मान्यता है कि इन्द्र के पुत्र जयंत ने ही सबसे पहले कौए का रूप धारण किया था। यह कथा त्रेता युग की है जब भगवान श्रीराम ने अवतार लिया और जयंत ने कौऐ का रूप धर कर माता सीता को घायल कर दिया था।
तब भगवान श्रीराम ने तिनके से ब्रह्मास्त्र चलाकर जयंत की आंख फोड़ दी थी। जब उसने अपने किए की माफी मांगी तब राम ने उसे यह वरदान दिया की कि तुम्हें अर्पित किया गया भोजन पितरों को मिलेगा। तभी से श्राद्ध में कौओं को भोजन कराने की परंपरा चली आ रही है। यही कारण है कि श्राद्ध पक्ष में कौओं को ही पहले भोजन कराया जाता है।
nice
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जवाब देंहटाएंअच्छा प्रश्न-
जवाब देंहटाएंश्रद्धा से जुड़ा हुआ ।
सादर -
काँव काँव करते कटुक, किन्तु मिले इक रोज ।
खीर-पूरियों से सजा, पकवानों का भोज ।
पकवानों का भोज, खोज नहिं पाते पित्तर ।
केवल इतना याद, बुढापे में यह रविकर ।
करे रात दिन शोर, गया कविता करके मर ।
दिखे गया में आज, वही तो काँव काँव कर ।।
उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।
जवाब देंहटाएंवस्तुतः 'श्राद्ध और तर्पण'=श्रद्धा +तृप्ति। आशय यह है कि जीवित माता-पिता,सास-श्वसुर एवं गुरु की इस प्रकार श्रद्धा-पूर्वक सेवा की जाये जिससे उनका दिल तृप्त हो जाये। लेकिन पोंगा-पंथियों ने उसका अनर्थ कर दिया और आज उस स्टंट को निबाहते हुये लोग वही कर रहे हैं।
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