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12 अक्तूबर 2012

आदरणीय दोस्तों में जो भी कुछ लिख रहा हूँ इसे पढ़ कर ना तो आप अपना वक्त बर्बाद करें और ना ही मूड खराब करें

आदरणीय दोस्तों में जो भी कुछ लिख रहा हूँ इसे पढ़ कर ना तो आप अपना वक्त बर्बाद करें और ना ही मूड खराब करें क्योंकि यह तो भारत देश है यहाँ तो सब ऐसा ही चलता रहता है लेकिन कुछ है मेरे लाजवाब दोस्तों की तरह जो क्रान्ति लाना चाहते है जो इस सच को आगे बढ़कर देश को बचाना चाहते है इसलियें वोह मेरी इस बकवास पर विचार भी करेंगे और हो सकेगा तो लोगों से सवाल कर हालातों को बदल कर सुधर भी करने की कोशिश करेंगे ....कोटा में वकीलों के विवाद को लेकर दो फाड़ होने जा रहे थे आज अविश्वास प्रस्ताव पेश होना था लेकिन  धड़े ने सावधानी बरती और इत्तफाक से आज पूर्व बार कोंसिल अध्यक्ष के निधन के कारण कण्डोलेंस हुई और मामला साफ़ हो गया ....लेकिन आज सुबह कुछ वरिष्ठ अभिभाषकों ने मुझे घेर लिया कहते थे के तुम लोग संघर्ष में आगे रहते हो ...खूब क्रान्ति लाते हो लेकिन हमे यह तो बताओ के वकीलों के हित में और न्यायिक सुधर के लियें हमने कितने संघर्ष किये ..उनका कहना था के कोटा में कई जजों और मजिस्ट्रेटों के पद रिक्त है क्या इस मामले में कभी हडताल .कभी आन्दोलन किया गया ..किया मुख्य न्यायधीश का घेराव किया गया ..उनका सवाल था के कई सालों से वकील कोटे से अपर जिला जज स्तर के लोगों की नियुक्ति नहीं हुई है क्या इस मामले में किसी वकील संस्था ने कोई सवाल खड़ा किया नहीं ना ..वरिष्ट साथियों का तीसरा हमला था हर साल वकालत खाने में चुनाव होते है क्या यहाँ के चुनाव गुणवत्ता के आधार पर होते  है वही भीड़तंत्र बाहर के नॉन  प्रेक्टिशनर वोटर आते है और अनचाहे लोगों को चुनाव जिताते है फिर साल भर रोते रहो ..उनका कहना था के वार्षिक शुल्क चुनाव लड़ने वाले जमा कराते है ....वकीलों के चुनाव में खाने से लेकर शराब पार्टियां होती है घर घर जाने की परम्परा है ..एक प्रेक्तिसिंग वकील या काम करने वाला वकील केसे चुनाव जीत सकता है ..उनका कहना था के फिर जो लोग चुनाव जीतते है उनमे से कई निर्वाचित लोग तो कार्यकारिणी की बैठकों में भी नहीं जाते ..खेर बात वकालत खाने से बाहर निकली जेबी संस्थाओं के रवय्ये तक पहुंच गयी पहले रेड्क्रोस संस्था का ज़िक्र चला जिसके कलेक्टर चेयरमेन होते है बरसों से चुनाव नहीं हुए किसी ने विधान के अनुरूप काम करने की कोशिश भी नहीं की ..फिर कोटा की भारतेंदु संस्था की बात चली वाही सदस्य बनाओ चुनाव जीतो और फिर साधारण सभा भी मत बुलाओ ......बात प्रेस क्लब और पत्रकारों के संगठनों तक जा पहुंची इन संस्थाओं में भी सदस्यता से लेकर चुनाव प्रणाली का बुरा हाल है और दुसरे जो संगठन है उनका कोई विधान है भी तो पालना नहीं ..कथित समाज सेवी संस्थाएं ..समाजों की संस्थाएं सभी जगह दादागिरी और बाहुबली  पेसे वालों के पास है चुनाव होते नहीं संस्थाएं बनती जाती है और हिसाब किताब में घोटाले ....विधान का खुला उलन्न्घन चलता है मंत्रियों की चमचागिरी होती है और संस्थाएं किसी व्यक्ति विशेष पार्टी या फिर किसी की गुलाम बन कर रह जाती है ..उनका कहना था क्या देश भर में गठित वक्फ कमेटियां ..देवस्थान कमेटियां ..कोंग्रेस भाजपा और दूसरी पार्टियों की जिला ..प्रदेश और राष्ट्रीय कमेटियां क्या वैधानिक अनुरूप चल रही है सब जगह मनमानी ..चापलूसी और चमचागिरी है दोस्तों बाते तो बहुत थी लेकिन में क्या करता सभी बाते सही और सच थीं में सर झुकाए हाँ भरता रहा और वरिष्ठ साथी कहते रहे के तुम युवाओ ...लेखक हो ..पत्रकार हो आग उगलने वाली भाषा इस्तेमाल करते हो अगर हो सके तो सोए हुए देश को जगाओ ..चेताओ वरना विकलांग संस्था के नाम पर तो क्या हर तरफ घोटाले ही घोटाले होते रहेंगे अब बताइए जनाब यह कडवा सच कडवा घूंट समझ कर में पी तो गया लेकिन समझ नहीं पा रहा हूँ के अब में आप लोगों की ताकत के बल पर इन हालातों को बदलने के लियें क्या कुछ करूं के बहुत कुछ नहीं तो थोड़े तो हालत बदल जाएँ बोलो क्या मेरी इस मामले में मदद करोगे ...............या फिर यूँ ही जेसा चल रहा है चलने दोगे ......अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान 

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