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28 सितंबर 2012

मौत के सालभर और उसके बाद कहां भटकती है आत्मा?



 

सनानत धर्म में भाद्रपद माह की पूर्णिमा व आश्विन माह के कृष्णपक्ष के16 दिनों में श्राद्ध कर्म के जरिए पूर्वजों को याद कर उनसे स्वयं के जीवन की परेशानियों को दूर करने की भी कामना की जाती है। किंतु धर्म शास्त्रों का का कम ज्ञान और समझ रखने वाले कई लोग मृत्यु और श्राद्ध से जुड़े पहलुओं को नहीं जानते।

ऐसे लोगों के जेहन में यह सवाल रहता है कि आखिर श्राद्ध से जुड़े धर्म-कर्म पितरों को कैसे प्रसन्न करते हैं? यहां जानिए मौत और श्राद्ध से जुड़ी ऐसी ही जिज्ञासा ओं का जवाब -

दरअसल, सनातन धर्म मे माना जाता है कि मानव शरीर पंच तत्वों - आग, पानी, पृथ्वी, वायु, आकाश, पांच कर्म इन्द्रियों हाथ-पैर आदि सहित २७ तत्वों से बना है। जब मृत्यु होती है तो शरीर और कर्मेंन्द्रियों पंचतत्वों में ही मिल जाती है। किंतु बाकी १७ तत्वों से बना अदृश्य और सूक्ष्म शरीर इसी संसार में बना रहता है।



हिन्दू शास्त्रों के मुताबिक सांसारिक मोह और लालसाओं की वजह से यह सूक्ष्म शरीर १ साल तक अपने मूल स्थान, घर और परिवार के आस-पास ही रहता है। किंतु शरीर न होने से उसे कोई भी सुख नहीं मिल पाता और इच्छा पूरी न होने से वह अतृप्त रहता है।



इसके बाद वह अपने कर्म के मुताबिक अलग-अलग योनि में जाता है। हर योनि में किए गए कर्म के मुताबिक जनम-मरण का चक्र चलता रहता है।



यही वजह है कि मौत के बाद सालभर और उसके बाद भी मृत परिजन को तृप्त करने और जनम-मरण के बंधन से छुड़ाने के लिए श्राद्ध कर्म किया जाता है। श्राद्ध के जरिए भोजन के साथ सारे सुख व रस सूक्ष्म तरीके से मृत जीव की आत्मा या अलग-अलग योनि में घूम रहे पूर्वजों को मिलते हैं और वह तृप्त हो जाते हैं। खासतौर पर पितृपक्ष काल में, जिसमें यह माना जाता है कि पूर्वज इस विशेष काल में अपने परिजनों से मिलने जरूर आते हैं।

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