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11 अगस्त 2012

एक सदी पुराने ‘अर्जुन’ को ऑपरेशन के बाद मिली नई जिंदगी!



नई दिल्ली। बाग-बगीचों के शहर दिल्ली में खड़े हजारों वृक्ष वर्षो से इसकी धरोहर का अटूट हिस्सा हैं। बीमारी और संक्रमण से दम तोड़ रहे राजधानी के इन पेड़ों को अब दोबारा नया जीवन दिया जा रहा है।

फंगल इंफेक्शन और कमजोरी की मार झेल रहा लोधी एस्टेट में खड़ा एक सदी पुराना ‘अर्जुन’ ऑपरेशन के बाद अब स्वस्थ है। एनडीएमसी की प्लांट प्रोटेक्शन सेल के इलाज से उसे नया जीवन मिल गया है। लुटियन जोन में ऐसे कई पेड़ हैं जो दशकों पुराने हैं। प्लांट प्रोटेक्शन सेल के इलाज से अब तक ऐसे 115 पेड़ों को जीवनदान मिल चुका है।

सेल के पास बाकायदा एक ट्री-एंबुलेंस है जो किसी बीमार पेड़ की पहचान होते ही उस पेड़ तक पहुंच जाती है। इस कार्यक्रम की शुरुआत मई, 2011 में मुख्यमंत्री आवास के पास जनपथ पर एक फाइगस पेड़ के इलाज से हुई।

शनिवार को कनाडा के दूतावास के बाहर एक पेड़ का इलाज किया गया। लुटियन जोन में लगभग एक लाख बड़े पेड़ हैं। इनमें उम्रदराज पेड़ों की संख्या करीब 10 हजार के आसपास है। अधिकांश उम्रदराज पेड़ फंगल इंफेक्शन, दीमक लगने, पत्तियों और झाड़ों पर कीड़े लगने जैसी बीमारियों से ग्रस्त हैं।

इनके उचित इलाज के लिए देहरादून के फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट की सलाह पर ट्री-एंबुलेंस योजना अपनाई गई है। फॉरेस्ट इंस्टीट्यूट ने कुछ एनडीएमसी कर्मचारियों को इसका प्रशिक्षण भी दिया है। पेड़ों के इलाज में करीब तीन से चार घंटे लगते हैं और इसके लिए सबसे अनुकूल मौसम फरवरी का होता है।

ट्री-एंबुलेंस में क्या है खास

एनडीएमसी उद्यान विभाग के सह निदेशक जितेंद्र कौशिक के मुताबिक एक छोटे ट्रक को एंबुलेंस के रूप में विकसित किया गया है। इसमें पेड़ों के इलाज संबंधी सभी औजार, दवाएं और ड्रेसिंग उपकरण हमेशा तैयार रहते हैं। इसके अगले हिस्से में दो टैंक हैं। एक टैंक में पानी है और दूसरे में इंसेक्टिसाइड और पेस्टीसाइड भरा होता है।

इसकी मदद से करीब 35 से 40 फुट तक के पेड़ की धुलाई की जा सकती है। इसके अलावा इसमें बड़े डालों या तनों को काटने वाले चेन-सॉ का एक सेट, छोटी डालों की कटाई के लिए ट्री-प्रूनर, दवाओं का पेस्ट बनाने वाला मिक्सिंग ट्रे, दवाओं की पूरी आलमारी सहित चिकित्सा दल के बारह सदस्यों के बैठने की व्यवस्था होती है।

कैसे होती है पेड़ों की सर्जरी

बीमार पेड़ का मुआयना करने के बाद सबसे पहले उस पर दवा छिड़की जाती है। मुख्य तने के खोखले हिस्से में फोम व थर्मोकोल भरकर उस पर जाली लगा दी जाती है और ऊपर से पीओपी का लेप कर दिया जाता है।

प्लांट प्रोटेक्शन सेल के सुपरवाइजर रोहताश शर्मा बताते हैं कि बरसात में पानी से बचाने के लिए उसके ऊपर सीमेंट का लेप किया जाता है और पल्ली बांध दी जाती है।

सर्जरी के बीस दिन तक उसकी निगरानी की जाती है। पेड़ जब अपनी सही अवस्था में आने लगता है तो महीने में एक बार उसकी नियमित जांच की जाती है।

कौन सी बीमारियों से पीड़ित हैं पेड़

माइट : पत्ते से शुरू होने वाली यह बीमारी, पेड़ का विकास एकाएक रोक देती है। मिलिपाउडर : यह कीट कच्चे तने की नमी को सोख लेता है और पेड़ तेजी से सूखने लगता है।

दीमक और फंगस : यह पेड़ों की लकड़ी को खाता जाता है जिससे देखते देखते हरा-भरा पेड़ खोखली हो जाता है। फंगस के लगते ही पेड़ों की लकड़ियां सड़ने लगती हैं।

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