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24 अगस्त 2012

पाइल्स की समस्या में ये तरीका रामबाण है




पाइल्स या बवासीर एक ऐसा रोग है जिसमें रोगी का स्वास्थ्य काफी दयनीय हो जाता है। साथ ही असहनीय पीड़ा भी सहन करना पड़ती है। योग शास्त्र में इस रोग की पीड़ा से निपटने के लिए श्रेष्ठ मुद्रा महामुद्रा बताई गई है।



महामुद्रा की विधि
किसी स्वच्छ और साफ स्थान पर कंबल या दरी बिछाकर दोनों पैरों को सामने फैलाकर बैठ जाएं। अब दाहिने पैर को मोड़ते हुए एड़ी को गुदा द्वार के नीचे रखें। इसके बाद झुकते हुए बाएं पैर के अंगूठे को दोनों हाथों से पकड़ें तथा सांस लें। मूल बंध ( सबसे पहले सिद्धासन की अवस्था में बैठ जाएं आपके दोनों घुटने जमीन को छूते हुए होने चाहिए तथा हथेलियां उन पर टिकी होनी चाहिए। फिर गहरी सांस लेकर वायु को अंदर ही रोक ले )और जलंधर बंध (जलंधर बंध का मतलब होता है सांस की नली को सिकोड़ना। सबसे पहले जमीन पर पद्मासन या सुखासन में बैठ जाएं। फिर दोनों घुटनों को जमीन पर टिका लें। इसके बाद दोनों हाथों की हथेलियों को घुटनों पर रखकर बैठ जाएं। अब दोनों आंखों को बंद करके शरीर को ढीला छोड़ दें। फिर गहरी सांस लेकर सांस को अंदर ही रोककर रखें तथा सिर को आगे नीचे की ओर झुका लें और ठोड़ी को उसी जगह पर जोर से दबाएं। इसके बाद कंधों को थोड़ा सा उचकाकर गोलाकार रूप में आगे की ओर मोड़े, दोनों हाथ की हथेलियां जमीन पर टिकी होनी चाहिए।
ऐसे ही स्थिति में जितनी देर तक हो सके बैठे रहें) अब भुजाओं और कंधों को ढीला छोड़कर सिर को धीरे से उठाते हुए सांस को बाहर छोड़ें। जब सांस लेने की क्रिया पहले की ही तरह सामान्य हो जाए तो इस प्रक्रिया को दोबारा करें। इस मुद्रा को खड़े रहकर भी कर सकते हैं। इसके बाद गुदा प्रदेश को पूरी तरह से सिकोड़ ले ताकि पूरा श्रोणि प्रदेश भी सिकुड़ जाएं। अब सांस को रोककर रखने के साथ आरामदायक समयावधि तक मुद्रा को बनाए रखें सिर को धीरे से ऊपर उठाएं और धीरे से सांस को बाहर छोड़ दें। इस अभ्यास को 4 से 5 बार करें। फिर गहरी सांस लें अंतर्चेतना को ऊध्र्वमुखी बनाने का प्रयास करें। कुण्डली चक्रों का ध्यान करें एवं बंध हटाएं। धीरे-धीरे रेचक क्रिया करें। यही क्रम दाहिने पैर से करें। एवं यथा संभव कुंभक करें। यह मुद्रा कम से कम 4-5 बार करें।
जालंधर बंध, पूरक, रेचक, कुंभक आदि से संबंधित लेख पूर्व में प्रकाशित किए जा चुके हैं।
मुद्रा के लाभ
इस मुद्रा से पेट संबंधी रोग जैसे कब्ज, एसीडिटी, कब्ज, अपच जैसी बीमारियां दूर होती हैं। बवासीर नाश होता है। ध्यान के लिए उत्कृष्ट एवं कुंडली जागरण में यह मुद्रा काफी फायदेमंद है। पुराना बुखार भी इस मुद्रा से ठीक हो जाता है।

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