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23 अगस्त 2012

इंटरनेट सेंसरशिप में सरकार ने की खामियां


सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसायटी ने 18 अगस्त से 21 अगस्त के बीच सरकार द्वारा इंटरनेट पर प्रतिबंधित की गईं 309 सामग्रियों का अध्ययन किया और सरकारी प्रक्रिया में कई तरह की कमियां पाईं। कुछ तो ऐसे यूआरएल को ही ब्लॉक कर दिया गया था जो कभी इंटरनेट पर थे ही नहीं।


सेंटर के प्रोग्राम मैनेजर प्रणेश प्रकाश कहते हैं, 'यह स्पष्ट है कि सूची को ध्यान से नहीं बनाया गया। अफवाहों रोकने के लिए प्रतिबंधित की गई कुछ पोस्टों में कुछ ऐसी पोस्ट भी शामिल थी जो कि अफवाहों के ही खिलाफ थीं। सूची में कुछ तो ऐसे आइटम भी शामिल थे जो की इंटरनेट पर मौजूद ही नहीं थे।'

जिन 309 पोस्टों को ब्लॉक करने के लिए सरकार द्वारा कहा गया उनमें कुछ यूआरएल, ट्विटर खाते, तस्वीरों में टैग, ब्लॉग पोस्ट और कुछ वेबसाइटें शामिल थी। इंटरनेट पर सेंसरशिप के सरकारी कदम पर प्रकाश ने कुछ कानूनी सवाल भी उठाए है। सेंटर की वेबसाइट पर पोस्ट एक लेख में प्रकाश कहते हैं, 'ब्लॉक किए गई कुछ सामग्रियों का कानून और नैतिक रूप से बचाव किया जा सकता है हालांकि कुछ पोस्टों को हटाया जाना जरूरी था।'

प्रकाश के मुताबिक भारतीय इंटरनेट सेवा प्रोवाइडर भी सरकार के इशारों पर कुछ ज्यादा ही जल्दी काम करते हैं। कई बार ऐसा भी हुआ है कि सरकार ने किसी खास यूआरएल को ब्लॉक करने के लिए कहा हो और आईएसपी ने पूरी वेबसाइट ही ब्लॉक कर दी हो। रिपोर्टों के मुताबिक एयरटेल ने कुछ शहरों में यूट्यूब के शॉर्ट यूआरएल youtu.be को पूरी तरह ही ब्लॉक कर दिया है। सरकार ने कुछ समाचार वेबसाइटों से लेखों को हटाने की भी गुजारिश की है।

वहीं इंटरनेट पर फैलाई जा रही नफरत की आग के बारे में सरकार ने तर्क दिया था कि अधिकतर संदेश पाकिस्तान से शुरू किए गए थे लेकिन एक रिपोर्ट के मुताबिक बीस फीसदी से अधिक आक्रामक और हिंसक पोस्टों को हिंदू कट्टरवादी संगठनों की वेबसाइटों और ट्विटर और फेसबुक खातों से पोस्ट किया गया।

1 टिप्पणी:

  1. यह सरकारी तंत्र की कार्यशैली का एक नमूना है.सही और गलत का फैसला नहीं कर पाना ही कई समस्यायों का जनक होता है. इंटरनेट की दुनिया में देश और समाज के प्रति जागरूक लोग ज्यादा बड़ी तादाद में हैं. शरारती तत्व थोड़े हैं. दोनों के बीच के फर्क को यदि सरकार समझ ले तो समस्या का सही समाधान निकल सकता है और यदि इस बहाने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आघात करने की नीयत है तो बात दूसरी है.एक बात और... सत्तारूढ़ लोग देस और समाज के प्रतीक नहीं हो सकते. जनतंत्र में देस जनता का प्रतीक होता है. सत्ता तो बदलती रहती है.

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