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05 जुलाई 2012

शाबान का महीना

शाबान का महीना

توكل1 300x214 शाबान का महीना
शाबान अरबी महीने का आठवा महीना है जिसका अर्थ होता है कि लोगों का पानी को लिए एलग एलग स्थानों पर तलाशना या लोगों का गुफाओं में जाना, (ऐसा पूराने अरब वासी करते थे)
अल्लाह तआला ने लोगों को पुण्य प्रदान करने के लिए विभिन्न बहाना तालाशता है जिस के लिए उसने मानव को बहुत से कर्म और कार्य करने के लिए उत्साहित किया है। जो बन्दा बहुत ज़्यादा नफली इबादों के माध्यम से अल्लाह की कुर्बत और निकटतम चाहता है, अल्लाह उसे अपना सब से अच्छा भक्त बना लेता है और उसकी प्रत्येक प्रकार से मदद करता है और जीवन के हर मोड़ पर अल्लाह की सहायता उस के साथ होती है। रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया कि अल्लाह तआला फरमता है। ” जो मेरे भक्तों से दुशमनी करता है, मैं उस से युद्ध की घोषणा करता हूँ, और मुझे सब से अधिक प्रिय है कि मेरा बन्दा वह कार्य करे जिसे मैं उस के ऊपर अनिवार्य किया, और निरंतरण के साथ मेरा बन्दा नफली इबादतों के माध्यम से मेरी प्रसन्नता को तलाशता रहता है, यहां तक कि मैं उस से प्रेम करने लगता है और जब मैं उस से प्रेम करने लगता हूँ, ……..

नफली इबादतों में नफली रोज़ो की एक एलग महत्वपूर्णता है, जिस के बहुत ज़्यादा लाभ हासिल होते हैं, इन्हीं नफली रोज़ो में शाबान के महीने के रोज़े भी हैं, शअबान का महीना रमज़ान के महीने से पहले आता है, गोया कि शअबान के नफली रोज़े रमज़ान के फर्ज़ रोज़े के स्वागत के लिए है, प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) दुसरे महीनों के मुकाबले में शाबान के महीनें में ज़्यादा रोज़ा रखते थे। जैसा कि आइशा (रज़ी अल्लाहु अन्हा) वर्णन करती हैं। ” रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) इस प्रकार रोज़े रखते थे कि हम समझने लगते कि अब आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) हमेशा रोज़े रखेंगे और आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) इस प्रकार बिना रोज़े के रहते थे कि हम समझने लगते कि अब आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) रोज़े नहीं रखेंगे, मैं ने नही देखा कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) रमज़ान महीने के सिवा किसी दुसरे महीना के पूरे महीने का रोज़ा रखा हो, और मैं ने नही देखा कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) शाबान महीने के सिवा किसी दुसरे महीने के ज़्यादा रोज़े रखें हों।” (सही बुखारी और सही मुस्लिम)
हदीस के मश्हूर विद्वान अहमद बिन अली बिन हज्र अल-अस्क़लानी कहते है, रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) दुसरे महीनों के मुकाबले में शाबान के महीनें में ज़्यादा रोज़े रखते थे और शअबान के ज़्यादा दिन रोज़े की हालत में गुज़ारते थे, इस से शाबान के नफली रोज़े की महत्वपूर्णता प्रमाणित होती है। (फतहुल बारी शर्ह सही बुखारी)
इस शाबान महीने के रोज़े की महत्वपूर्णता दुसरे प्रकार से साबित होता है जैसा कि उसामा बिन जैद (रज़ी अल्लाहु अन्हु) कहते हैं कि ” मैं ने रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से प्रश्न किया कि, ऐ अल्लाह के रसूल! मैं ने आप को शाबान के महीने में बहुत ज़्यादा रोज़े रखते हुए देखा है परन्तु शाबान के सिवाए दुसरे किसी महीने में आप इतना ज़्यादा रोज़ा नहीं रखते हैं। तो रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने उत्तर दिया। यह वह महीना है जो रजब और रमज़ान के बीच हैं जिस से बहुत से लोग गफलत करते हैं, यह वह महीना है जिस में कर्म अल्लाह के पास पेश किये जाते हैं और मैं चाहता हूँ कि मेरा कर्म रोज़े की हालत में पेश किया जाए।” (सुनन नसई और हदीस के बहुत बड़े विद्वान अल- अलबानी ने सही कहा है)
इबने रजब कहते हैं ” शाबान के रोज़े हुरमत वाले महीने के रोज़े से उत्तम हैं, इसी प्रकार रमज़ान से पहले नफली रोज़े और रमज़ान के बाद नफली रोज़े दुसरे नफली रोज़े से उत्तम और अफज़ल है, यह फर्ज़ नमाज के बाद जरुरी सुन्नत की तरह है (लताइफुल मआरिफ)
शाबान महीने की पंद्रहवी रात जिसे उर्फ आम में शबे बरात कहा जाता है, जिस की फज़ीलत और उत्तमता के प्रति सीमा का उलंघण किया गया है, शबे बरात के प्रति जितनी भी हदीसें बयान की जाती हैं, सब हदीसें बहुत ही ज़ईफ तथा कम्ज़ोर और मन्घड़त हैं जैसा कि हदीसों के बड़े बड़े विद्वानों ने कहा है, केवल एक हदीस जो शबे बरात के प्रति आइ है और उसे इमाम अलबानी ने हसन हदीस कहा है।
عَنْ أَبِي مُوسَى الأَشْعَرِيِّ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ عَنْ رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّه عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ : إِنَّ اللَّهَ لَيَطَّلِعُ فِي لَيْلَةِ النِّصْفِ مِنْ شَعْبَانَ فَيَغْفِرُ لِجَمِيعِ خَلْقِهِ إِلا لِمُشْرِكٍ أَوْ مُشَاحِنٍ (رواه ابن ماجه – 1380 ، وحسنه الألباني في صحيح الجامع (1819)
अबू मूसा अल-अश्अरी (रज़ी अल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया ” बैशक अल्लाह शाबान के पंद्रहवी रात को देखता है तो अपने सब बन्दो को क्षमा कर देता है सिवाए अल्लाह के साथ शिर्क करने वालों और एक दुसरे के लिए दुशमनी, कीना कपट रकने वालों को । ” (सुनन इब्ने माजा, हदीस संख्याः 1380)

इस्लामिक इबादतों में सब से महत्वपूर्ण दो शर्ते हैं जिस का पाया जाना प्रत्येक कर्म या पूजा में अनिवार्य हैं तभी अल्लाह के पास वह इबादत स्वीकारित होंगी।
(1) वह कर्म और पूजा तथा इबादत निः स्वार्थ हो, दुनिया की लालच या लोगों को दिखाने के लिए न हो बल्कि केवल अल्लाह तआला को खुश करने के लिए किया जाए और केवल अल्लाह के लिए ही की जाए, उस इबादत में अल्लाह के साथ किसी को तनिक भागीदार और साझीदार नहीं बनाया जाए।
(2) वह कर्म और पूजा तथा इबादत अल्लाह के नबी मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के सुन्नत के अनुसार हो और वह सुन्नत सही हदीसों के शर्तों पर उतरती हों।
तभी हमारी कोई भी इबादत और पुण्य का कार्य अल्लाह के पास स्वीकारित होगी और हमें उस कार्य पर सवाब और पुण्य प्राप्त होगा वर्ना हमारे कार्य पर पाप या गुनाह मिलेगा।
नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने यह भविष्यवाणी भी कर दिया था कि कुछ लोग होंगे जो दीन में अपनी ओर से मिलावट करेंगे चाहे उस की नियत अच्छी हो या बुरी, दोनों कारणों में उसे पाप ही प्राप्त होगा और जन्नत में दाखिल होने से वंचित होंगे, रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के साथ हौज़ कौसर के स्वादिष्ट पानी के पीने से महरूम और वंचित होंगे। सही बुखारी की इस हदीस पर विचार करें।
عنْ سَهْلِ بْنِ سَعْدٍ قَالَ : قَالَ النَّبِيُّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ : إِنِّي فَرَطُكُمْ عَلَى الْحَوْضِ مَنْ مَرَّ عَلَيَّ شَرِبَ ، وَمَنْ شَرِبَ لَمْ يَظْمَأْ أَبَدًا ، لَيَرِدَنَّ عَلَيَّ أَقْوَامٌ أَعْرِفُهُمْ وَيَعْرِفُونِي ، ثُمَّ يُحَالُ بَيْنِي وَبَيْنَهُمْ ، فَأَقُولُ : إِنَّهُمْ مِنِّي ، فَيُقَالُ : إِنَّكَ لَا تَدْرِي مَا أَحْدَثُوا بَعْدَكَ ، فَأَقُولُ : سُحْقًا ، سُحْقًا ، لِمَنْ غَيَّرَ بَعْدِي .- رواه البخاري
सहल बिन साद (रज़ी अल्लाहु अन्हु) कहते हैं कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया, बैशक मैं कौसर कुंवाँ पर तुम्हारा स्वागत करूंगा, जो भी वहाँ मेरे पास से गुज़रेगा, वह उस कौसर कुंवाँ से पानी पीऐगा और जो उसका पानी पी लिया वह कभी पियासा नहीं होगा, यक़ीनन कुछ लोग मेरे पास आऐंगे और मैं उन्हें पहचान लूंगा और वह लोग भी मुझ से परिचित होंगे फिर उन्हें मेरे पास आने से रोक दिया जाएगा तो मैं कहुंगा, बैशक वह मेरे अनुयायी हैं, उसे मेरे पास आने दिया जाए, तो कहा जाएगा, बैशक आप नहीं जानते कि आप के बाद इन लोगों ने दीन (धर्म) में नई नई चीज़ों (बिदअतओं) पर अमल किया, तो मैं कहुंगा, दूर हो जाओ, दूर हो जाओ, जिन लोगों ने मेरे बाद दीन (धर्म) में नई नई चीज़ों (बिदअतों) पर अमल किया।
बिदआत और मुहदसात वह घातक बीमारी है जिस में मुस्लिम समाज लिप्त है।
आश्चर्य जनक बात यह है कि बहुत सारे लोग अतिप्रेम से बहुत कुछ इबादतें दीन के नाम पर करते हैं परन्तु उनकी यह कोशिश अकारत हो जाएगी और नेकियों की जगह गुनाहों से अपने दामन को भरते हैं, इस लिए हम सब को अपनी इबादतों के लिए चिंतन रहना चाहिये और केवल वही काम करना चाहिये जो सही हदीसों और नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सुन्नत से प्रमाणित हो,

शबे बरात में हमारे बहुत से मुसलमान भाई सौ रकात वाली नमाज पढ़ते हैं जब हम हदीसों की महत्वपूर्ण पुस्तकों और मुहद्देसीन उलमा के अकवाल (हदीस के बहुत बड़े बड़े विद्वानों के कथन) पढ़ते हैं तो वह कहते हैं कि शबे बरात में की जाने वाली इबादतें बिदअत और खुराफात है जो जाइज नहीं और सही हदीसो से साबित नहीं है, आलमे इस्लाम के सब से मश्हुर मुफ्ती अल्लामा इब्ने बाज़ (रहमतुल्लाह अलैहि) से प्रश्न किया गया कि क्या शबे बरात की कोई खास नमाज हदीसों की रोशनी में प्रमाणित हैं  तो उन्हे ने उत्तर दिया, शाबान की पंदर्हवी रात( शबे बरात) के बारे में आई सब हदीस ज़ईफ और निहायत कमज़ोर है बल्कि वह मौज़ूअ और मन्घड़त है, इस रात में न कोइ खास इबादत और न ही तिलावत, और न जमाअत है, जिन उलमा ने इस की अहमीयत बयान किया है, उनकी बात कमज़ोर है, इस रात में कोइ खास अमल जाइज़ नही है। ( मज्मूअ फतावा इब्ने बाज़)

शबे बरात के दिन का रोज़ा रखना भी साबित नही, इसी प्रकार कब्रिस्तान की ज़िरात और रूहों का आना और उन के लिए खाना और हल्वे और दुसरी चीज़े पका कर उस पर फातिहा पढ़ाना सब बिदअत और खुराफात के लिस्ट में आता है जैसा के मुहद्देसीन उलमा ने फरमा दिया है।

अल्लाह हम सब को सीधे रासते पर चलने की क्षमता प्रदान करे और दीन की सही समझ दे और हमें दीन और दुनिया दोनों में सफल जीवन प्रदान करे, आमीन

रहमतों के महीने रमजान से पहले मगफेरत का महीना शाबान आता है, जिसे रसूल अकरम ने गुनाहों को मिटाने वाला महीना करार दिया है। इस शाबान के महीने में एक रात ऐसी भी आती है, जिसमें अल्लाह अपने गुनहगार बन्दों की दुआओं को सुनता है और उन लोगों को जहन्नुम से निजात देता है। उस रात अल्लाह की रहमत जोश में होती है और वह पुकार-पुकार कर मगफेरत की चाहत रखने वालों को अपने हुजूर में तौबा करने की इजाजत देता है। और फिर उनकी दुआएं कुबूल करता है। फजीलत और बरकत वाली यह रात शबे बरात मुस्लिम कैलेंडर के आठवें महीने शाबान की चौदहवीं रात (तारीख) को मगरिब के वक्त शुरू होकर सुबह सूरज निकले तक जारी रहती है। शबे बरात के माने निजात या रिहाई की रात के हैं। हदीस में बयान किया गया है कि इस रात इस कायनात का मालिक पहले आसमान पर जलवागर होकर इंसानों को पुकारता है कि है कोई जो मगफेरत तलब करे तो मैं उसको बख्श दूं, कोई रिज्क मांगे तो उसे रिज्क दूं, कोई बीमार दुआ करे तो मैं उसे शिफा बख्शूं। अल्लाह के रसूल ‘मोहम्मद सल्ललाहोअलैहे वसल्लम’ फरमाया करते थे कि शाबान मेरा महीना है, रजब अल्लाह का महीना है और रमजान मेरी उम्मत का महीना है। शाबान गुनाहों को मिटाने वाला और रमजान पाक करने वाला है। शबे बरात का जिक्र करते हुए अल्लाह के रसूल ने एक बार फरमाया कि इस रात अल्लाह के फरिश्ते हजरत जिबराईल मेरे पास आये और कहा कि यह वह रात है, जिसमें अल्लाहतआला रहमत के दरवाजों में से तीन सौ दरवाजे खोलता है और हर उस शख्स को बख्श देता है, जो अल्लाह की जात में किसी को शरीक न करता हो। न वह जादूगर हो और न वह अपनी बीबी के अलावा दूसरी औरत से जिस्मी ताल्लुक रखता हो। न जो सूद खाता हो, लेकिन अगर ये लोग भी अपने गुनाह से तौबा कर लें तो अल्लाह उनको भी बख्श देता है। गोया इस रात की फजीलत यही है कि इस रात लोगों के गुनाह माफ किये जाते हैं। इस बात से यह भी जाहिर होता है कि इस दुनिया को बनाने वाले मालिक को अपने बंदे कितने महबूब हैं कि वह अपने बंदे को अपने गुनाहों से तौबा करने का बार-बार मौका देता है। पर बंदा बार-बार गुनाह करने पर तुला रहे तो फिर उसको तबाह होने से कौन बचा सकता है? लिहाजा इस रात जागकर घूमने-फिरने और पटाखे छोड़ने के बजाय जरूरत इसकी है कि पूरी रात मालिक से उसकी रहमत, उसके फजलो करम, उसकी बख्शीश और उसकी रजा तलब करें।

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