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28 जुलाई 2012

पहली बार खाप ने लगाई पुरुषों पर पाबंदी, सिर्फ पांच फीसदी को मंजूर

मुजफ्फरनगर (यूपी). मुजफ्फरनगर के हैबतपुर गांव में 21 जुलाई को ऐतिहासिक पंचायत हुई। पहली बार किसी पंचायत ने पुरुषों पर पाबंदी लगाई। लेकिन इसे मान रहे हैं सिर्फ पांच फीसदी लोग। न मानने वालों को कोई सजा नहीं। इससे पहले पंचायतों ने महिलाओं के पहनावे से लेकर शादी पर जब भी फतवे दिए तो इसी उत्तर प्रदेश में उसे न मानने वालों को मौत की सजा तक सुना दी गई।


चौपाल या गांव प्रधान के घर के बजाए पंचायत हुई दबदबे वाले नैनसिंह के घर। गांव प्रधान की सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। गांव में घुसते ही नैनसिंह का पता पूछा तो एक बुजुर्ग ने कहा - सैनियों के मोहल्ले में जाओ। गांव प्रधान के बारे में बात करते ही एक लड़का बोला - वह तो हरिजन है। जबकि इन्हीं लोगों ने सात दिन पहले पंचायत में जाति प्रथा को मिटाने का फैसला किया था।


आवारागर्दी रोकने के लिए चौराहों पर लड़कों के बेवजह खड़े होने पर पाबंदी लगाई। लेकिन हर दूसरी गली के मोड़ पर वे तीन-चार के ग्रुप में बतियाते दिखे। बाकी ईंट-खड़ंजे की सड़कों पर बाइक पर घूमते मिले। एक छात्र से पूछा - मोबाइल इस्तेमाल करते हो? हंसने लगा- नहीं करेंगे तो दोस्तों, रिश्तेदारों से बात कैसे करेंगे। गाने कहां सुनेंगे?


कुछ ने माना, कुछ ने अनसुना किया


गांव में राजपाल जैसे युवक भी हैं। उसका सारा परिवार इन पाबंदियों का पालन करने का दावा करता है। पूछा कि पुरुषों पर पाबंदी क्यों? बोले कि महिलाएं अपने ऊपर पाबंदी खुद लगाएं। फैसला खुद करें। गांव की महिलाएं सिर ढंकती हैं। तो उन्होंने ने भी सफेद कपड़े से सिर ढंकना शुरू कर दिया है। जब राजपाल की मां से पूछा कि क्या वह दहेज के खिलाफ हैं? तो घूंघट के पीछे से ही जवाब दिया - मैं तो अपनी बहू से नहीं लूंगी। उपकेंद्र के बाहर चाय की छोटी सी दुकान पर कुछ लोग मजे से चुस्कियां ले रहे थे। चाय खत्म हुई तो गुटखे का दौर चला। जब पाबंदी की याद दिलाई तो बोले इसके बिना तो हाथ पैर ही न चले। नहीं तो मेहनत मजदूरी कैसे करेंगे?

ये तुगलकी फरमान तो है नहीं

उदयपाल ने कहा, ‘हमारा गांव कोई छोटा गांव न है। 2500 की आबादी। हम जबरदस्ती ना कर रहे। कोई तुगलकी फरमान ना है। हो सकै असर थोड़ा देर से आवे।’ प्राथमिक स्वास्थ केंद्र के ठीक सामने मांगेराम का घर है। उसने भले पंचायती फरमान के बाद एक हफ्ते से शराब नहीं पी हो। लेकिन उसके दादा दिनभर हुक्का गुड़गुड़ाते रहते हैं। पास ही की पंसारी की दुकान के सामने बीडी फूंक रहे कुछ अधेड़ कहते हैं, इतने साल में नहीं छूटी तो अब क्या फायदा। हां, लेकिन लड़कियों को पढ़ाने और उन्हें आजादी देने के पक्षधर हैं। उनमें से एक धीरसिंह बताने लगे, मेरी बेटी ग्रेजुएट है। उसकी जहां मर्जी होगी शादी करूंगा।

ये भी हैं उदाहरण

हैबतपुर से 30 किमी दूर, देवबंद जिले के मीरकपुर गांव में सैकड़ों वर्षो से किसी ने नशा नहीं किया है।
यूपी के ही बागपत जिले के असारा गांव में पंचायत ने महिलाओं के जींस पहनने, अकेले बाहर जाने पर पाबंदी लगाई थी। इसके तीन दिन बाद हैबतपुर में पुरुषों पर पाबंदी की पंचायत बैठी।
मुजफ्फरपुर के ही दूधाहेड़ी में लड़कियों ने जींस की होली जलाई। यह असरा में पंचायत के फरमान के बाद हुआ।

पाबंदी और सजा


स्कूली लड़के मोबाइल पर बात न करें।
युवा चौराहों पर फालतू न घूमें।
दहेज मांगने और ऑनर किलिंग करने वालों को समाज से निकाल देंगे।
ज्यादा बाराती लाने पर जुर्माना लगेगा।
चाय भी नशा है। हर तरह का नशा करने वाले का करो समाज से बहिष्कार ।
दलित महिला से शादी करनेवाले को दो आरक्षण।

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