महाभारत में अब तक आपने पढ़ा....भीमसेन के पीछे महारथी विराट और द्रुपद खड़े हुए। उनके बाद नील के बाद धृष्टकेतु थे। धृष्टकेतु के साथ चेदि, काशि और करूष एवं प्रभद्रकदेशीय योद्धाओं के साथ सेना के साथ धर्मराज युधिष्ठिर भी वहां ही थे। उनके बाद सात्यकि और द्रोपदी के पांच पुत्र थे। फिर अभिमन्यु और इरावान थे। इसके बाद युद्ध आरंभ हुआ। रथ से रथ और हाथी से हाथी भिड़ गए। कौरवों ने एकाग्रचित्त होकर ऐसा युद्ध किया की पांडव सेना के पैर उखड़ गए। पांडव सेना में भगदड़ मच गई अब आगे....
भीष्म ने अपने बाणों की वर्षा तेज कर दी।सारी पांडव सेना बिखरने लगी। पांडव सेना का ऐसा हाल देखकर श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि तुम अगर इस तरह मोह वश धीरे-धीरे युद्ध करोगे तो अपने प्राणों से हाथ धो बैठोगे। यह सुनकर अर्जुन ने कहा केशव आप मेरा रथ पितामह के रथ के पास ले चलिए। कृष्ण रथ को हांकते हुए भीष्म के पास ले गए। अर्जुन ने अपने बाणों से भीष्म का धनुष काट दिया।
भीष्मजी फिर नया धनुष लेकर युद्ध करने लगे। यह देखकर भीष्म ने अर्जुन और श्रीकृष्ण को बाणों की वर्षा करके खूब घायल किया। भगवान श्रीकृष्ण ने जब देखा कि सब पाण्डवसेना कि सब प्रधान राजा भाग खड़े हुए हैं और अर्जुन भी युद्ध में ठंडे पढ़ रहे हैं तो तब श्रीकृष्ण नेकहा अब मैं स्वयं अपना चक्र उठाकर भीष्म और द्रोण के प्राण लूंगा और धृतराष्ट्र के सभी पुत्रों को मारकर पाण्डवों को प्रसन्न करूंगा। कौरवपक्ष के सभी राजाओं का वध करके मैं आज युधिष्ठिर को अजातशत्रु राजा बनाऊंगा।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
23 जून 2012
क्या आप जानते हैं, महाभारत युद्ध में कृष्ण को क्यों उठाना पड़ा था चक्र?
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चार महावाक्य जो प्रत्येक सनातनी को कंठस्थ हो तो क्या ही सुन्दर बात हो......
जवाब देंहटाएं१. प्रज्ञानं ब्रह्म (ऐतरेय उपनिषद ३/५/३)
ब्रह्म शुद्ध ज्ञान स्वरूप है
२. अहम् ब्रह्मास्मि (शतपथ ब्राह्मण ४/३/२/२१)
मै ब्रह्म हूँ
३. तत् त्वमसि (छान्दोग्य उपनिषद ६/८/७)
वह ब्रह्म तुम हो
४. अयमात्मा ब्रह्म (माण्डूक्योपनिषद २)
यह आत्मा ब्रह्म है।
भगवान हमारे पूर्वज है अगर तो हम उनके वंश ज़ हुवे बस यहिसे शुरू होती है अनन्य भक्ति जो हमारे नस नसमे पहले सेही फैली हुई है ।
वामन रुपे फरे छे विराट जेनो सीधो अर्थ छे दरेंक जीव वामन देखाय छे पण विराट ज छे |
दीया तले अंधेरा जीसमे दीया शरीर है और अंधेरा वह है जो अपने अंदर ईश्वरकी ज्योतसे अंजान है। बडाही आश्चर्य लगता है उनको जब ये जानकारी मिलती है के जीस दीयेकी बात सतसंगमे हो रही है वह है शरीर के उपर ओर मस्तिक केभी उपर बिना बाटी और तेलके पहलेसेही जलती रहती है वह ज्योती ईश्वरके स्वयं प्रकाशकी जो अपनेही श्वासोमे छिपे ईश्वरकी बात हो रही है। पर थी खस अने श्वमां वश। परतंत्रता को छोडो और स्वतंत्र जो ईश्वर पहलेसेही है उसमे खुदको जोडो। बस यही है जीवन मुक्तिका मंत्र। आत्मासे परमात्माका सफर जो अनंत है।
श्वासों में बैठे ईश्वर के शहारे खुदको मस्तिकमें बैठे अपने मालिक अपने भगवनमे मिलादेना यहे है मनुष्य जन्मकी प्राप्तिका लाभ|