इस बार देवशयनी एकादशी व्रत 30 जून, शनिवार को है। इस व्रत की कथा धर्म शास्त्रों में बताई गई है। उसके अनुसार-
एक बार देवर्षि नारद ने ब्रह्माजी से देवशयनी एकादशी का महत्व जानना चाहा। तब ब्रह्माजी ने उन्हें बताया- सतयुग में मांधाता नामक एक चक्रवर्ती राजा था। उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। एक बार उनके राज्य में भयंकर अकाल पड़ा। इस अकाल से चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। प्रजा ने राजा के पास जाकर अपनी व्यथा सुनाई। राजा मांधाता यह देखकर बहुत दु:खी हुए। इस समस्या का निदान जानने के उद्देश्य से राजा सेना को लेकर जंगल की ओर चल दिए।
वहां वे एक दिन ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचे। अंगिरा ऋषि ने उनके जंगल में घूमने का कारण पूछा तो राजा ने अपनी समस्या बताई। तब महर्षि अंगिरा ने कहा कि सब युगों से उत्तम यह सतयुग है। इसमें छोटे से पाप का भी बड़ा भयंकर दंड मिलता है। ब्राह्मण के अतिरिक्त किसी अन्य जाति को तप करने का अधिकार नहीं है जबकि आपके राज्य में एक अन्य जाति का व्यक्ति तप कर रहा है इसीलिए आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही है। जब तक उसका अंत नहीं होगा तब तक यह अकाल समाप्त नहीं होगा।
किंतु राजा का हृदय एक निरपराध तपस्वी को मारने को तैयार नहीं हुआ। तब महर्षि अंगिरा ने राजा को आषाढ़ मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का व्रत करने के लिए कहा। राजा के साथ ही सभी नागरिकों ने भी देवशयनी एकादशी का व्रत विधिपूर्वक किया। व्रत के प्रभाव से उनके राज्य में मूसलधार वर्षा हुई और पूरा राज्य धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
29 जून 2012
जानिए, क्या फल मिलता है देवशयनी एकादशी व्रत से
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