उन्होंने प्रदेश सरकार को रीप्रेजेंटेशन देकर आग्रह किया है कि प्रदेश सरकार इस मुद्दे पर केंद्र से बात करे। पंचकूला जिला केमिस्ट्स एसोसिएशन ने इसके लिए बाकायदा राज्य की वित्तायुक्त हेल्थ और स्टेट ड्रग कंट्रोलर को कई नामी दवा कंपनियों के दामों में काफी ज्यादा अंतर का हवाला भी दिया है।
सिर्फ 74 दवाओं पर ही नियंत्रण
अभी नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी ने सिर्फ 74 दवाओं के दामों पर नियंत्रण रखा हुआ है। बाकी सैकड़ों किस्म की दवाओं पर कंपनियां अपना मनमाना मूल्य अंकित करती हैं। स्टेट ड्रग कंट्रोलर डा. जी.एल. सिंघल के मुताबिक केंद्र के ड्रग प्राइस कंट्रोल आर्डर के तहत सन1979 में करीब 350 किस्म की बल्क दवाओं (मॉलीक्यूल्स)के दामों पर सरकारी नियंत्रण था, जो सन 1987 में घटकर 140 दवाओं पर ही रह गया। फिर 1995 में सिर्फ 74 दवाएं ही इस दायरे में रह गईं।
यूं लुट रहे हैं मरीज
कंपनी दवा में मिला सॉल्ट ब्रांडनेम रिटेल कीमत
सिपला रेबीप्राजोल रैबीसिप 20 70 रुपए के 15
रैनबेक्सी रेबीप्राजोल रोपाज 20 30 रुपए के 10
सिपला स्रिटाजिन एलरिड 39 रुपए के 10
सेलोजाइन स्रिटाजिन सेंटोरियन 10 रुपए के 10
जीएसके एमोक्सी क्लेवनेट 625 आगुमेंटिन 625 एमजी 263 रुपए के 6
सिपला एमोक्सी क्लेवनेट 625 आगुमेंटिन 625 एमजी 108 रुपए के 6
फाइजर प्रेगाबिलिन 75 एमजी लाइरिका 75 768 रुपए के 14
सिपला प्रेगाबिलिन 75 एमजी नोवा 75 65 रुपए के 10
सिपला सिप्रोफलोक्सेसिन 500 सिप्लोक्स 500 एमजी 92 रुपए के 10
एफडीसी सिप्रोफलोक्सेसिन 500 जोक्सन 500 50 रुपए के 10
नाम के अनुसार दाम स्टेट ड्रग कंट्रोलर डा. सिंघल का कहना है कि दवा कंपनियों का बेच मूल्य अलग होने के कई कारण रहते हैं। इनमें उन कंपनियों की अपनी मार्केटिंग पॉलिसी होना भी एक कारण है। जिनका नाम बिकता है, वे अपनी मर्जी के मूल्य वसूलती हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)