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31 मई 2012

पेट्रोल की कीमतों को रोकने के लियें विपक्ष सामूहिक इस्तीफे देकर जनहित में दुबारा चुनाव क्यूँ नहीं करवाता ..क्योंकि चोर चोर मोसेरे भाई है

दोस्तों कितनी अजीब बात है पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोत्तरी का विपक्ष ने विरोध करने के लिए भारत बंद का एलान किया और भारत बंद कर भी दिया ...विपक्ष का कहना था के जनता के फायदे के लियें उसे इंसाफ दिलाने के लियें यह सब करना पढ़ रहा है ..यकीन मानिए आपने भी देखा होगा के आज बंद के दोरान छोटे छोटे बच्चों को भूके प्यासे लोग ओरतें वगेरा पैदल तेज़ धुप में पेरो को रगड़ते देखे गए सभी के मुंह पर तनाव और जुबां पर बंद समर्थकों के लियें गालिया थीं ..बात सही भी है किसी भी सियासी लड़ाई में जनता को खेंच कर उसे परेशान करने का हक किसी के पास नहीं है .......बात सीधी सी है सरकार ने पेट्रोल की कीमतें बड़ाई विपक्ष ने हंगामा किया दिखावा किया सियासत के नाम पर बंद किया लेकिन हासिल ठेंगे के लावा कुछ नहीं हुआ ...अगर विपक्ष इतना इमानदार है और सरकार को इस मूल्य वृद्धि पर सबक सिखाना चाहता है तो विपक्ष के पास सीधा एक रास्ता है के वोह अपने सभी सदस्यों को एकत्रित करे और सभी सांसदों से राष्ट्रपति के नाम सामूहिक इस्तीफे दिलवाए .....जनता को भी लगेगा के विपक्ष इस मामले में जनता के साथ है और सही मायनों में इस विरोध के बाद लोकसभा लंगड़ी हो जाने के कारण सरकार और चुनाव आयोग के पास मध्यावधि चुनाव करने के आलावा कोई चारा नहीं बचेगा फिर से चुँव आयेंगे दूध का दूध पानी का पानी होगा और फिर लोग जीतेंगे हारेंगे नई लोकसभा बनेगी तब फेसले हो जायेंगे लेकिन सभी जानते है के विपक्ष सिर्फ दिखावा करता है ..दिल से जनता के साथ नहीं है वोह चाहता है के सरकार बनी रहे और जनता पिसती रहे क्योंकि इसमें विपक्ष के नेताओं को भी लाभ है वोह भी समितियों में रहकर मजे कर रहे है इसलियें दोस्तों विपक्ष का यह तमाशा जब तक उनका इस्तीफा नहीं होता है तब तक बेमानी और दिखावटी है और पक्ष विपक्ष दोनों ही जनता के लिए तो चोर चोर मोसेरे भाई है .................

आज एक बार फिर भारत बंद है। बंद महंगाई के खिलाफ है। पर इतिहास गवाह है कि हाल के दिनों में कोई राजनीतिक पार्टी बंद करा कर अपनी मांग नहीं मनवा पाई है। यहां तक कि अन्‍ना के जनांदोलन से भी वह हासिल नहीं हो सका, जिसके लिए जनांदोलन किया गया था।

बंद आम जनता के नाम पर आयोजित किए जाते हैं। पर बंद के दिन जनता पर तिहरी मार पड़ती है। उस दिन काम-काज का नुकसान तो होता ही है, बंद समर्थकों द्वारा सार्वजनिक संपत्ति को पहुंचाए गए नुकसान की भरपाई का बोझ भी उसके ऊपर पड़ जाता है। और, जिस समस्‍या से निजात दिलाने के लिए बंद किया जाता है, अगले दिन वह समस्‍या भी जस की तस बनी रहती है।

आज के बंद की ही बात करें तो लोग समय पर दफ्तर नहीं पहुंच सके, दिहाड़ी मजदूरों को काम नहीं मिल सका, मरीजों को अस्‍पताल पहुंचने में मुश्किल हो रही है, रेल यात्री जहां-तहां फंसे हुए हैं.....

पिछले दिनों आयोजित कुछ बंद से हुए नुकसान पर भी एक नजर डालिए:

तेलंगाना के लिए बंद: साल 2010 में अलग तेलंगाना के लिए आयोजित बंद से आंध्र प्रदेश में 60 हजार लोगों की रोजी-रोटी गई। एक दिन के बंद से राज्‍य में केवल कंपनियों को 530 करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान लगाया गया। अगस्‍त 2010 से अगस्‍त 2011 के दौरान राज्‍य में करीब 17 दिन बंद आयोजित किया गया और इससे 9010 करोड़ रुपये की चपत लग गई। तेलंगाना राज्‍य अब तक नहीं बन सका है।

6 जुलाई, 2010: अखिल भारतीय व्यापारी परिसंघ (कैट) ने बताया कि भारत बंद के दौरान व्यापारियों ने बढती महंगाई के खिलाफ कारोबार बंद रखा। इससे तकरीबन 20 हजार करोड रुपए का नुकसान हुआ और सरकार को तीन हजार करोड़ रुपए के राजस्व की हानि उठानी पड़ी।

इन बातों पर गौर करते हुए इस सवाल का जवाब जानना-समझना मौजूं हो जाता है कि इस तरह के बंद से किसका फायदा हो रहा है और यह किसके लिए किया जा रहा है और क्‍या विरोध का यह तरीका जायज है?

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