दिलचस्प है कि पिछले तीन वर्ष के दौरान पेट्रोल 47 प्रतिशत और डीजल 25 प्रतिशत महंगा हुआ। 3 साल पहले पेट्रोल की कीमत करीब 44 रुपये प्रति लीटर थी, वहीं 7.50 रुपये के इजाफे से पहले ये आंकड़ा 67 रुपये के आस-पास बना हुआ था।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली संप्रग सरकार में पिछले 3 सालों में पेट्रोल-डीजल की कीमतें कई बार आसमान पर पहुंची हैं। 3 सालों की इस अवधि में पेट्रोल की कीमतों में 16 बार और डीजल के दामों में 5 बार इजाफा किया गया है। पेट्रोल 44 से बढ़कर करीब 67 रुपये और डीजल 33 रुपये से बढ़कर 41 रूपये हो गया है।
सरकार ने 2 साल पहले पेट्रोलियम पदार्थों पर सब्सिडी के बढ़ते बोझ को कम करने के लिए इसे अंतर्राष्ट्रीय बाजार की कीमतों से जोड़ा था। जून 2010 में ऐसा होने के बाद पेट्रोल को प्रशासनिक मूल्य प्रणाली के दायरे से बाहर कर दिया गया था। इससे पेट्रोल पर सरकार का नियंत्रण लगभग खत्म हो गया था। इतना ही नहीं सरकार ने कंपनियों को वैश्विक बाजार कीमतों के आधार पर हर 15 दिन पर कीमतों में बदलाव तक की छूट दे दी थी।
आंकड़ों के मुताबिक, 2 जुलाई 2009 को दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 44.72 रुपये प्रति लीटर थी। वहीं दिसंबर 2011 में ये कीमत 65 रुपये पर पहुंच गई थी।
तीन साल की इस अवधि में नवम्बर 11 में पेट्रोल की कीमत ऊपर में 68.64 रुपये प्रति लीटर तक भी पहुंची। इस दौरान डीजल की कीमत 32.67 रुपए से बढकर 40.91 रुपए पर पहुंच गई। हालांकि इस अवधि के दौरान डीजल के दाम ऊपर में 41.29 रुपये प्रति लीटर तक भी पहुंचे।
तेल कंपनियों की दुहाई है कि लागत से कम कीमत पर उत्पाद बेचने से सालाना उनकी अंडर रिकवरी लगभग एक लाख 39 हजार करोड रुपये तक पहुंच गई है जिससे कंपनियों की वित्तीय सेहत पर विपरीत असर पडा है।
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