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10 अप्रैल 2012

गुणों से भरा है बबूल....इस कांटेदार पेड़ के हैं ये ढेर सारे आयुर्वेदिक उपयोग


कहते हैं बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से पाए। बबूल के पेड़ के नाम का उपयोग इस कहावत में तो उसकी अनुपयोगिता या अवगुण बताने के लिए किया गया है। लेकिन आयुर्वेद की दृष्टि से देखें तो बबूल आयुर्वेदिक गुणों से भरपूर है।

रासायनिक तत्व- बबूल की छाल में 7 से 12 प्रतिशत तक द्रव्य होता है। बबूल की फली में 12 से 19 प्रतिशत तक टेनिन पाया जाता है। इसका गोंद बहुत उपयोगी होता है। इसके गोंद का संग्रह मार्च-मई में किया जाता है। बबूल गोंद गोल या अंडाकार हल्के पीले से गहरे भूरे रंग के कणों के रूप में होती है। गोंद में मुख्यत: गैलेक्टोअरेबन होता है। इसको जलाने पर 1.8 प्रतिशत राख प्राप्त होती है जिसमें अरेबिक ऐसिड, कैल्शियम, मैग्रेशियम, होते हैं। बबूल गोंद के योग से अनेक आयुर्वेदिक औषधियां बनाई जाती है जैसे बबूलारिष्ट और लवंगादि वटी आदि।

बबूल के गुण- बबूल का गोंद स्निग्ध, मधुर-कषाय रस, मधुरविपाक तथा शीतवीर्य होता है। बबूल कफ और पित्त का नाश करने वाला है।इसका गोंद स्निग्ध मधुर और पित्त और वात का नाश करने वाला होता है, यह जलन को दूर करने वाला, घाव को भरने वाला, रक्तशोधक, है। इसके सेवन से गर्भाशय की सूजन तथा गर्भाशय से होने वाला स्त्राव ठीक हो जाता है। बबूल की गोंद में वजीकारक गुण होता है। पुराने बबूल की छाल अधिक गुणकारी होती है। इसकी छाल निकाल कर उसे छाया में सुखाकर रख लें और आवश्यकता पडऩे पर इसका उपयोग किया जा सकता है। प्रदर रोग में छाल का काढ़ा बनाकर वस्ति देने से लाभ होता है। मुख, दांत व गले के रोगों में छाल के गरारा करने से रोगों का नाश होता है। इसकी फलियां कच्ची और लाभकारी होती हैं। अत: कच्ची फलियों को तोड़कर छाया में सुखाकर किसी डिब्बे में बंद कर सुरक्षित रखा जा सकता है। फलियां एक साल तक गुणकारी रहती हैं जबकि छाल दो साल तक लाभकारी रहती है

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