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22 मार्च 2012

जानें, कैसे लाज और इलाज के लिए कारगर हैं नीम व गुड़?



हिंदू नव वर्ष का पहला दिन गुड़ी पड़वा के रूप में भी प्रसिद्ध है। इससे जुड़ी धार्मिक मान्यताओं पर गौर करें तो गुड़ी का अर्थ है - विजय ध्वज या पताका। माना जाता है कि इसी दिन भगवान श्रीराम ने बाली को मारा था। बाली के अत्याचार से मुक्त हुई प्रजा ने घर-घर में उत्सव मनाकर पताका (गुडिय़ां) फहराई।

इसी तरह लोक परंपराओं में गुड़ी को एक स्त्री का रूप दिया जाता है। एक लकड़ी के डण्डे के ऊपरी सिरे पर कलश रख उसके चारों ओर साड़ी लपेटी जाती है। उसे फूलों की माला पहनाकर घर के द्वार पर लगा दी जाती है। उसकी पूजा-हवन किए जाते हैं। जिसके पीछे स्त्री के शक्ति स्वरूप को सम्मान देने का भाव भी जुड़ा है।

बहरहाल, नएपन, आशा, उम्मीदें, उमंग रंगों से सराबोर इस शुभ दिन से ऐसी परंपराएं भी जुड़ी है, जो मन व तन को भरपूर शक्ति, ऊर्जा, आत्मविश्वास व मनोबल देकर जीवन के उतार-चढ़ाव में भी संतुलित रख सफलता के नई-नई ऊंचाईयों पर ले जाती है।

इसी कड़ी में इस दिन भोजन में श्रीखण्ड, पूरन पोली का विशेष महत्व है। जिसमें पूरन पोली या मीठी रोटी बनाई जाती है। इनमें गुड़, नमक, नीम के फूल, इमली और कच्चा आम। प्रतीकात्मक रूप से गुड़ बोल व व्यवहार में मधुरता के लिए, नीम के फूल मन से कलह व कड़वाहट को दूर रखने और इमली व आम की खटाई जीवन के उतार-चढ़ाव का संकेत है।

इस दिन औषधि के रूप में नीम की पत्तियाँ, काली मिर्च, अजवाइन, मिश्री और सौंठ भी खाए जाते हैं, जो अपने औषधीय गुणों के प्रभाव से व्यक्ति को निरोग, सबल, ऊर्जावान बनाते हैं। साथ ही शरीर को बढते तापमान के अनुकूल भी बनाते हैं।

सार यही है कि नीम, गुड़ और खटाई खाना संकेत करता है कि जीवन में कटु बातों और व्यवहार को भुलाकर हम प्रेम और स्नेह के मार्ग पर चलें। निराशा को हटाकर उत्साह से आगे बढ़ें। लोभ, निंदा, कटु बोल, बुरी आदतें, असंयम और गलत लोगों का साथ छोड़ें। ईश्वर के प्रति आस्थावान होकर अपने कर्तव्यों का पालन नि:स्वार्थ भाव से करें। ऐसा आचरण व आदत तन, मन को पुष्टि और प्रतिष्ठा को बढ़ाने वाला सिद्ध होगा।

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