नागपुर. हमारी संस्कृति कहती है-सत्यमेव जयते यानी सत्य की जीत होती है। माता-पिता बच्चों को सच बोलने की सीख देते हैं।
स्कूलों में सत्य की जीत की कहानियां पढ़ाई जाती हैं। इसके बावजूद अप्रैल फूल बनाने का चलन नहीं घटा। अप्रैल फूल शरारत भरी आत्मीयता का दिन है। कितने लोग इस बात को समझते हैं?
ठेस न पहुंचे दिल को
बरसों पहले पश्चिम के कुछ लोगों ने अप्रैल महीने की पहली तारीख को मूर्ख बनाने का दिन घोषित कर दिया। धीरे-धीरे यह दिवस दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गया।
कुछ लोग अप्रैल फूल के दिन खुद को दूसरों से ज्यादा बुद्धिमान जताने की फिराक में रहते हैं। लोगों के दिलों को ठेस पहुंचाने के लिए कोई भी दिन अच्छा नहीं होता। अप्रैल फूल भी नहीं।
शेर को सवा शेर
अप्रैल फूल डे को ऑल फूल्स डे भी कहा जाता है। न्यूजीलैंड, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका में इस दिन केवल दोपहर तक ही मजाक किया जाता है। अगर कोई दोपहर के बाद मजाक करता है तो उसे अप्रैल फूल कहा जाता है। इस रिवाज का संबंध अखबारों से है।
ब्रिटेन के अखबार केवल सुबह के संस्करण के लिए अप्रैल फूल पर मुख्य पृष्ठ निकालते हैं। फ्रांस, आयरलैंड, इटली, दक्षिण कोरिया, जापान, रूस, नीदरलैंड, जर्मनी, ब्राजील, कनाडा और अमेरिका में मजाक करने का सिलसिला दिन भर चलता है।
मूर्खो का पवित्र दिन!
जानकार बताते हैं कि वर्ष 1539 में फ्लेमिश कवि डे डेने ने एक अमीर व्यक्ति की शरारत के बारे में लिखा था। इस व्यक्ति ने 1 अप्रैल को अपने सेवकों को मूर्खतापूर्ण कार्य सौंपे थे।
वर्ष 1686 में इतिहासकार जॉन ऑब्रे ने 1 अप्रैल को मूखोर्ं का पवित्र दिन बताया था। तिहास की किताबों में यह भी दर्ज है कि 1 अप्रैल 1698 को कई लोगों को शेर को नहलाने का दृश्य दिखाने का लालच देकर धोखे से टावर ऑफ लंदन ले जाया गया था।
ईडियट बॉक्स का जोर
आजकल टेलीविजन चैनल में बुद्धु बनाने के कार्यक्रम प्रसारित हो रहे हैं। हमने फिल्मों में ऊंची पहाड़ी से हीरो के कूदने का दृश्य कई बार देखा है। धीरे-धीरे दर्शक ट्रिक वीडियोग्राफी समझ गए।
अब रियलिटी शो की असलियत भी सामने आ रही है। ऐसे कार्यक्रम भी हैं जिनमें एक दोस्त प्रोग्राम निर्माताओं के सहयोग से दूसरे दोस्त को मूर्ख बनाने का प्रयास करता है।
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