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25 फ़रवरी 2012

और नरक से भी बदतर हो गई इन दो मासूमों की जिंदगी



कोटा.सीलन भरे कमरे में खिड़की की जालियों से बंधे दो मासूम बच्चे वहां उठती दुर्गंध की परवाह किए बिना अपनी ही धुन में अठखेलियां कर रहे थे। पास की रसोई में एक बुजुर्ग उनके लिए भोजन की व्यवस्था कर रहा था। दी- दुनिया से बेखबर दो युवतियां कभी तालियां बजा रही हैं तो कभी जोर-जोर से हंसने लगती हैं।

इसी बीच एक बच्चे ने गंदगी कर दी तो बुजुर्ग काम छोड़कर उसकी सफाई में लग गया। बावजूद उसके चेहरे पर किसी से कोई शिकायत नहीं थी बल्कि जीने और जीवनदान का जज्बा था। यह हृदयविदारक हाल है कैथूनीपोल मोखापाड़ा में काका भतीजे के मंदिर के पास रहने वाले 70 वर्षीय अमृतलाल के परिवार का। इस परिवार पर कुदरत का जो कहर बरपा है उसने हालात बद से बदतर कर दिए।

कभी हंसता खेलता परिवार था। धूमधाम से बड़ी बेटी हीरू की शादी घर से कुछ ही दूर पर की थी। उसके बाद से ही एक के बाद एक मुसीबतें शुरू हो गई। बेटी के दो बेटे हुए शंकर व सेवक। दोनों की मानसिक स्थिति बचपन में आए बुखार के कारण बिगड़ गई। अचानक बेटी की मौत हो गई।

दोनों बच्चे अमृतलाल के पास छोड़ दिए गए। उसके कुछ समय बाद दो और बेटियों 26 वर्षीय निर्मला व 24 वर्षीय सुलोचना की भी मानसिक स्थिति बिगड़ गई। घर में दो बच्चे व दो बड़ी बेटियां मानसिक रोग से पीड़ित और अमृतलाल की ढलती उम्र। पत्नी पहले ही चल बसी। घर में केवल एक अमृतलाल ही बचा। जिसके बुजुर्ग कंधों पर उन चारों के इलाज और उनके पेट भरने की जिम्मेदारी है।

अमृतलाल बताते हैं कि फेरी लगाकर गोली-बिस्किट बेचने से जो भी आय होती है उससे ही जैसे-तैसे गुजारा कर रहे हैं। चारों का काफी इलाज करवाया। प्राइवेट मनोचिकित्सक से लेकर एमबीएस अस्पताल तक में इलाज करवाया। जब तक रुपए थे तो खूब इलाज करवाया।

रुपए खत्म होगए तो मानसिक रोगी का सर्टिफिकेट बनाकर डॉक्टर ने यह कहते हुए दवा बंद कर दी कि यह तो ऐसे ही रहेंगे। बावजूद इन सबके अमृतलाल ने कभी किसी से शिकायत नहीं की। शुक्रवार को उस मकान में केबल कनेक्शन ठीक करने जब आपरेटर महेंद्र वर्मा व व्यापारी राकेश आचार्य पहुंचे तो उन्होंने बच्चों को बंधे हुए देखा।

पिता ने भी पल्ला झाड़ लिया

शंकर व सेवक के पिता घर से कुछ ही दूरी पर रहते हैं, लेकिन पत्नी की मौत के बाद उन्होंने इन बच्चों का इलाज करवाना तो दूर परवरिश तक करना मुनासिब नहीं समझा। उन दोनों को नाना के हवाले कर दिया।

इसलिए बांधकर रखना पड़ता है

इन बच्चों को बांधकर रखने के पीछे बुजुर्ग का दर्द यह है कि बड़ी बेटियां तो कोई नुकसान नहीं करती, लेकिन दोनों बच्चे काफी नुकसान कर देते हैं। कभी सामान उठाकर दूसरी मंजिल ने नीचे फेंक देते हैं तो कभी खाना उठाकर बाहर फेंक देते हैं। दरवाजा खुला देख इधर-उधर निकल जाते हैं।

फिर उन्हें तलाश करना पड़ता है। यदि इन बच्चों के पास ही रहूं तो फिर रोजी रोटी का जुगाड़ नहीं कर सकता। इसलिए बांध देता हूं ताकि वे घर में ही घूमते रहे। यदि कोई कोई संस्था उन बच्चों को अपने यहां रख सकें तो उनकी जिंदगी सुधर सकती है, वरना मेरे बाद क्या होगा..।

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