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03 फ़रवरी 2012

कैसे माल्यवान और पुष्पवती को पिशाच योनि से मुक्ति मिली?

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माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया, अजा व भीष्म एकादशी कहते हैं। इस बार यह एकादशी 3 फरवरी, शुक्रवार को है। इस एकादशी के संबंध में भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को एक कथा सुनाई थी, जो इस प्रकार है-

नंदन वन में उत्सव चल रहा था। इस उत्सव में सभी देवता, सिद्ध संत और दिव्य पुरूष उपस्थित थे। उस समय गंधर्व गायन कर रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं। सभा में माल्यवान नामक गंधर्व गा रहा था और पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या नृत्य कर रही थी। नृत्य के दौरान ही पुष्पवती माल्यवान पर मोहित हो गई और सभा की मर्यादा को माल्यवान को आकर्षित करने के लिए नृत्य करने लगी। पुष्पवती का नृत्य देखकर माल्यवान सुध-बुध खो बैठा और अपनी सुर-ताल से भटक गया।

यह देखकर इंद्र को बहुत क्रोध आया और उसने उन दोनों को स्वर्ग से वंचित होने व पृथ्वी पर पिशाच योनि में निवास करने का श्राप दे दिया। श्राप से तत्काल दोनों पिशाच बन गये और हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष पर दोनों का निवास बन गया। एक बार माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन दोनों अत्यंत दु:खी थे उस दिन उन्होंने केवल फलाहार किया। रात्रि के समय दोनों को बहुत ठंड लग रही थी अत: दोनों रात भर साथ बैठ कर जागते रहे। ठंड के कारण दोनों की मृत्यु हो गयी और अनजाने में जया एकादशी का व्रत हो जाने से दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति भी मिल गयी। अब माल्यवान और पुष्पवती पहले से भी सुन्दर हो गए और स्वर्ग लोक में उन्हें स्थान मिल गया।

इंद्र ने जब दोनों को देखा तो चकित रह गया और पिशाच योनि से मुक्ति कैसी मिली यह पूछा? माल्यवान के कहा यह भगवान विष्णु की जया एकादशी का प्रभाव है। हम इस एकादशी के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हुए हैं। इन्द्र इससे अति प्रसन्न हुए और कहा कि आप भगवान विष्णु के भक्त हैं इसलिए आप अब से मेरे लिए भी आदरणीय है। आप दोनों स्वर्ग में आनन्द पूर्वक विहार करें

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