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19 फ़रवरी 2012

महिलाओं के अधिकारों का दर्द है लेकिन बढ़े आराम के साथ

कल दिल्ली की एक समाज सेवी संस्था सी वी डवलपमेंट सोसाइटी ने कोटा के सेनिक कल्याण भवन में एक सेमीनार एक विचार गोष्ठी रखी ..उसमे दलित और मुस्लिम महिलाओं के मानवाधिकारों पर बोलने के लियें मुझे मुख्य वक्ता बनाया गया .....कार्यक्रम की शुरुआत के दोरान जब कोटा की महापोर श्रीमती रत्ना जेन भी इस में शामिल थीं में असमंजस में था के हमारे कोटा की प्रथम नागरिक महिला है हमारे देश की प्रथम नागरिक महिला है और फिर भी हमे महिलाओं के अधिकारों और उनके संरक्षण पर चर्चा करना उनके लियें चिंतित होना पढ़ रहा है ..एक अजीबो गरीब विरोधाभास मेरे मन में था जो मेने सभी बहनों और भाईयों से शेयर भी किया ..महापोर रत्ना जेन का बढ्प्पन था की उनके अति व्यस्त कार्यक्रमों के बाद भी वोह इस गोष्ठी में सभी कार्यक्रम रद्द करे अंतिम समय तक बेठी रहीं लोगों को सुनती रहीं और खुद के भी सुझाव विचार प्रकट किये ..................दोस्तों मेरे लियें दूसरी परेशानी मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों पर बोलने की थी अगर में मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों पर निष्पक्ष राय देता हूँ तो मुझे मुस्लिम कठमुल्लाओं के फतवे का शिकार होना पढ़ सकता है लेकिन मेने भी इसकी प्रवाह किये बगेर मुस्लिम कानून के तहत कुरान की आयत सुरे बकर और सुरे अन्निसा में महिलाओं के अधिकारों की व्याख्या की ..सुप्रीम कोर्ट के निर्णय शमीम आरा प्रकरण का हवाला दिया जिसमे स्पष्ट है के बिना कन्सिलेशन के एक साथ यदि तीन बार तलाक दिया जाता है तो वोह तलाक नहीं है ..मेने महर वसूली ..पारिवारिक सम्पत्ति में हक ...निकाह के वक्त अपनी पसंद का अवर चुनने का स्वतंत्र अधिकार रोज़गार का अधिअक्र ..घरेलू हिंसा ..गुज़ारा खर्च का अधिकार ...की बात की महिलाओं और खासकर मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों पर बात करना अजीब सा लगता है यूँ तो माँ के पेरों के नीचे जन्नत होना कह कर नारे लगाये जाते है लेकिन हकीक़त में माँ ..बेटी ..बहन के साथ और खासकर पत्नियों के साथ केसा सुलूक होता है हम और आप जानते है ..दलित महिलाओं के बारे में हम सभी जानते है के सरकारी बजट जो भी आता है वोह या तो सरकारी अधिकारी ..या फिर मंत्री ..या फिर समाज सेवी संस्थाएं चट कर जाती है ..हमारे देश में करोड़ों नहीं अरबों नहीं खरबों रूपये महिला कल्याण और पुर्न्र्वास के लियें खर्च होना बताया जाता है लेकिन कहां जाता है किस पर खर्च होता है दलित महिलाएं सभी कानून और सुविधाओं के बाद भी आज भी दलित है आज भी पिछड़ी है ..मुस्लिम महिलाएं आज भी दलित हैं आज भी पिछड़ी हैं लेकिन जो समाज सेवी संस्थाएं है वोह खुद सरकार के रुपयों से दूसरी आर्थिक मदद से पांच सितारा जिंदगी जरुर जी रहे है ..मेरा कहना था के चर्चाओं का वक्त गया चर्चाएँ अगर हम करेंगे तो जीवन एक नहीं हजार जीवन भी इसके लियें कम पढ़ जायेंगे लेकिन संकल्प लेकर अगर आज से ही हम लोग तय कर लें के महिलाओं को इन्साफ दिलाना है तो जो छीजत केंद्र और राज्यों से भेजी गयी मदद में हो रही है जो घोटाले हो रहे है उन्हें हम रोकना शुरू कर दें उन्हें हम उजागर करना शुरू कर दें तो यकीकन मानिए महिलाओं की ही नहीं देश की भी हालत सुधर जायेगी क्योंकि महिला अगर सुकून से रही तो बच्चे भी सुधर जायेंगे उनकी स्थिति भी सुधर जायेगी लेकिन इसके लियें सभी समाज सेवी संस्थाओं को निजी स्वार्थ निजी गुटबंदी ..राजनीति छोड़ना होगी और सही मायनों में सेवा कार्यों में जुटना होगा ..संस्था के सुरेन्द्र जी और मनीषा जी ने इस मामले में सभी को धन्यवाद दिया कार्यकम में अल्पसंख्यक अधिकारी रोनक खान पार्षद ..जिलापरिषद के सदस्य पंच सरपंच और समाज सेवी संस्थाओं से जुड़े लोग शामिल थे जिनका मकसद महिलाओं और हो रहे अत्याचारों को केसे रोका जाए इस पर चर्चा करना थी देखते है इस मामले में अब क्या अमल होता है ....अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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