माघ मास के शुक्लपक्ष की अष्टमी को भीष्म अष्टमी कहते हैं। इस तिथि को व्रत करने का बड़ा महत्व है। यह बार यह व्रत 31 जनवरी, मंगलवार को है। धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन बाल ब्रह्मचारी भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर अपने प्राण त्यागे थे। उनकी स्मृति में यह व्रत किया जाता है।
इस दिन प्रत्येक हिंदू को भीष्म पितामह के निमित्त कुश, तिल व जल लेकर तर्पण करना चाहिए, चाहे उसका माता-पिता जीवित ही क्यों न हों। इस व्रत के करने से मनुष्य सुंदर और गुणवान संतान प्राप्त करता है-
माघे मासि सिताष्टम्यां सतिलं भीष्मतर्पणम्।
श्राद्धं च ये नरा: कुर्युस्ते स्यु: सन्ततिभागिन:।।
(हेमाद्रि)
महाभारत के अनुसार जो मनुष्य माघ शुक्ल अष्टमी को भीष्म के निमित्त तर्पण, जलदान आदि करता है, उसके वर्षभर के पाप नष्ट हो जाते हैं-
शुक्लाष्टम्यां तु माघस्य दद्याद् भीष्माय यो जलम्।
संवत्सरकृतं पापं तत्क्षणादेव नश्यति।।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
30 जनवरी 2012
उत्तम संतान चाहिए तो आज करें भीष्म अष्टमी व्रत
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