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09 दिसंबर 2011

किताबों में सिमट कर रह गया है मानवाधिकार संरक्षण ....... केसा मानवाधिकार काहे का मानवाधिकार

किताबों में सिमट कर रह गया है मानवाधिकार संरक्षण ....... केसा मानवाधिकार काहे का मानवाधिकार ... जी हाँ दोस्तों आज मीडिया चेनल और अख़बारों का एक यही नारा बचा है देश में नागरिक को प्रत्येक अधिकार दिलाने की बात करने वाले इस दिवस के प्रति जिस तरह से सरकार और अख़बारों ..इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने उपेक्षा दिखाई है उससे तो यही स्पष्ट है के केसा मानवाधिकार काहे का मानवाधिकार और कोनसा विश्व मानवाधिकार दिवस ॥ एक अख़बार जी ने कल मानवाधिकार के बारे में जानकारी और लेखन लाइव को लेकर करीब एक घंटे से भी ज्यादा मेरा वक्त लिया में खुद मानवाधिकार संरक्षण मामले से जुडा रहा हूँ इसलियें मेने अपने निजी काम पक्षकारों की सुनवाई छोड़ कर इन अख़बार जी को वर्ष १९९३ से लेकर अब तक की कार्यवाही और हमारी हमन रिलीफ सोसाइटी की शिकायतों और निराकरण के बारे में समझाया आंकड़े बताये मानवाधिकार के बारे में बताया लेकिन आज अख़बार देखा तो खबर गायब थी ॥ इलेक्ट्रोनिक मिडिया की उपेक्षा तो आप जानते ही है ... लेकिन खुद सरकार और मानवाधिकार आयोग इस मामले में कितने गम्भीर हैं आप खुद ही देख लें ..भारत सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय दबाव में वर्ष १९९३ में मानवाधिकार आयोग का गठन किया एक कानून बनाया इस कानून में १९९३ में ही प्रावधान रखा के मानवाधिकार हनन के मामलों की सुनवाई के लियें प्रत्येक जिले में एक मानवाधिकार न्यायालय गठित किया जायेया उसमे एक सरकारी वकील ऐसे पीड़ितों के लियें आवश्यक रूप से लगाया जाएगा ..लेकिन दोस्तों में खुद महासचिव हमन रिलीफ सोसाइटी कोटा की हेसियत से एक हजार से भी अधिक पत्र ज्ञापन लिख चुका हूँ मानवाधिकार आयोग केंद्र और राज्यों पर सरकार अरबों रूपये खर्च कर चुकी है लेकिन अट्ठारह वर्षों में देश में मानवाधिकार न्यायालयों के गठन के प्रति न तो सरकार गम्भीर है और ना ही मानवाधिकार आयग केंद्र और राज्यों के अयोगों ने इस गम्भीर मसले पर अब तक कोई आवाज़ उठाई है ॥ हम राजस्थान की बात करें यहाँ अब तक कोई न्यायालय ऐसे मामलों की सुनवाई के लियें गठित नहीं किये गये है जबकि मेने एक बार फिर विस्त्रत ज्ञापन सरकार और केंद्र सरकार मानवाधिकार अयोगों को लिखे हैं लेकिन नतीजे के नाम पर सिफार रहा है । हमारे राजस्थान में कोई आदमी टूटी सडकें होने के कारण चल नहीं सकता ॥ प्र्दुष्ण से पीड़ित है अतिक्रमण और आवारा जानवरों के मरे परेशान है चलना फिरना उठाना बेठना सांस लेना दुश्वार है महिला उत्पीडन की स्थिति यह है के महिलाओं के मुकदमे अदालत से थानों में जाने के बाद भी हफ्तों दर्ज नहीं किये जाते .... घरेलू हिंसा मामलों में प्रोटक्शन ऑफिसर ने किसी भी महिला को खुद आगे रहकर कोई न्याय नहीं दिलवाया है न ही कोई मुकदमा अधिनियम के प्रावधान के तहत पेश किया है बेचारी पीड़ित महिला अदालत के जरिये न्याय मांगती है जिसे सालों अंतरिम गुज़ारा खर्च प्राप्त करने में लग जाते हैं ... पुलिस उत्पीडन से बचाने के लियें राजस्थान में वर्ष में पुलिस अधिनियम लागू कर दिया गया है लेकिन राज्य ॥ सम्भागीय और जिला स्तर पर पुलिस जवाब देहि समितियों का गठन कर पुलिस की जनता के साथ उत्पीडन की कारगुजारियों पर कोई विधिक व्यवस्था इतने वर्षों बाद भी लागू नहीं की गयी है पुलिस आयोग का गठन नहीं किया गया है । बच्चों के कल्याण के लियें कोई बाल आयोग नहीं है इन्डियन चिल्ड्रन एक्ट के प्रावधान के तहत थानों में ज्वेनाइल पुलिस यूनिट का गठन नहीं किया गया है बाल मजदूरी और उनके कल्याण के लियें सरकार के कोई कदम नहीं है ॥ वर्द्ध कल्याण कानून तो है सरकार ने नियम भी बनाये है लेकिन दोस्तों किसी भी थाना धिकारी द्वारा घर घर जाकर वृद्धों की स्थिति जानने की कोशिश नहीं की हे थानों से डी के बसू मामले में दिए गये गिरफ्तार व्यक्ति के मामलों के दिशा निर्देश गायब है तो दोस्तों जब मानवाधिकार कानून केवल और केवल किताबों में ही सिमट कर रह गया हो तो केसा मानवाधिकार काहे का मानवाधिकार फिर अख़बार जी और इलेक्ट्रोनिक मीडिया जी बेचारे इस संरक्ष्ण के मामले में क्या करें और क्यूँ करें ............ अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

1 टिप्पणी:

  1. मानवाधिकार इंसानों के लिए होते है सिर्फ आम इंसानों के लिए नहीं, कल तक उस टूटी फूटी सड़क से लाखो लोग गुजरते थे, कल उसी सड़क से मंत्री जी को गुजना है इसलिए एक दिन के लिए क्यों न हो हमें भी नयी सड़क पर चलने का सौभाग्य मिलने वाला है

    हिंदी टाइपिंग में उतना अच्छा नहीं हूँ आशा करता हूँ की आप समाज जायेंगे मै क्या कह रहा हूँ

    From Great talent

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