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18 दिसंबर 2011

कैबिनेट ने पास किया सोनिया का खाद्य सुरक्षा बिल

नई दिल्ली. केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा रविवार शाम राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक पर विचार करने के बाद उसे मंजूर कर दिया। हालांकि लोकपाल विधेयक पर बैठक में विचार नही हुआ। मंत्रिमंडल ने 13 दिसम्बर को सहयोगियों में सहमति कायम करने के मकसद से खाद्य विधेयक पर फैसला टाल दिया था।

अधिकारियों के मुताबिक केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार इस बात से चिंतित हैं कि यदि भोजन का अधिकार कानून लागू किया जाएगा तो 63 हजार करोड़ रुपये की मौजूदा खाद्य रियायत बढ़कर 1.2 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगी। बैठक के बाद सरकार ने कहा कि यदि पीडीएस व्यवस्था को सही से लागू किया गया तो फिर पैसे की दिक्कत नहीं आएगी। खाद्य विधेयक सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार समिति की प्रिय परियोजना है। यह 2009 के आम चुनाव में कांग्रेस के घोषणा पत्र का भी हिस्सा थी।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक के मसौदे में देश की 1.2 अरब आबादी के आधे हिस्से को चावल तीन रुपये, गेहूं दो रुपये और मोटा अनाज एक रुपये प्रति किलो की दर पर दिए जाने का प्रवधान है, लेकिन उच्च लागत और अनाज की अनुपलब्धता इसके रास्ते में बाधा बन सकती है। विधेयक में ग्रामीण आबादी के 75 प्रतिशत और शहरी आबादी के 50 प्रतिशत हिस्से को दायरे में लाने का प्रावधान है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 13 दिसम्बर को विधेयक के मसौदे पर फैसला टाल दिया था लेकिन रविवार शाम हुई बैठक में इसे मंजूर करा लिया गया।

केंद्रीय खाद्य मंत्री के.वी. थॉमस ने कहा, "हम संसद के इस सत्र में विधेयक को लाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं।" यह विधेयक सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की पसंदीदा परियोजना और वर्ष 2009 के आम चुनाव के समय घोषित कांग्रेस के घोषणापत्र का अहम हिस्सा है। जानकार सूत्रों का कहना है कि कृषि मंत्री शरद पवार ने चिंता प्रकट की है यदि इस विधेयक को लागू किया गया तो मौजूदा खाद्य सब्सिडी 63,000 करोड़ रुपये (12 अरब डॉलर) को बढ़ाकर 1.2 लाख करोड़ रुपये (23 अरब डॉलर) करना होगा।

उनका कहना है कि ऐसे में उर्वरक का मूल्य तथा अनाजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाना होगा और सरकार पर भारी खर्च का बोझ बढ़ेगा। विधेयक के मसौदे के अनुसार सामान्य श्रेणी के प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम तीन किलोग्राम आनाज प्रतिमाह न्यूनतम समर्थन मूल्य की आधी दर पर मुहैया कराया जाएगा।

केंद्रीय कृषि मंत्री ने सरकार से यह भी कहा है कि वह इसका दायित्व उन राज्यों को सौंप दे जो इस कानून को लागू करेंगे। राज्यों से कहा गया है कि वे महिलाओं, बच्चों असहाय और गृहविहीन लोगों को राशन प्राप्त करने का कानूनी अधिकार दें और उन्हें इससे पड़ने वाला अतिरिक्त वित्तीय बोझ वहन करना होगा। उल्लेखनीय है कि जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर गठित त्रिस्तरीय लोक शिकायत निवारण समितियां भी इस विधेयक की हिस्सा होंगी।

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