शिवकुमार ने "र, क और स"तीन अक्षरों से पूरी रामायण की रचना की है। शिवकुमार केवल आठवीं पास है। हालांकि उनके पिता एयरफोर्स में फ्लाइंग अफिसर थे। दो बड़े भाई हैं जो आस्ट्रेलिया और अमृतसर में रहते हैं।
फक्कड़ नुमा जिंदगी व्यतीत करने वाले 35 वर्षीय शिवकुमार का दिल न तो कभी स्कूली पढाई में लगा और न ही उन्हें जीवन में किसी सुख की कामना है। उनकी बस एक ही चाहत है कि वे अपनी रचना और अपने कर्म से देश, समाज और मानवता को सही रहा दिखा सकें। शिवकुमार कहते हैं कि एक प्रसंग ने उन्हें रामायण की रचना के लिए मजबूर कर दिया। वो थी कि महात्मा खुद को अगर इसलिए ईश्वर का अवतार बता दिया गया क्योंकि उन्होंने धार्मिक पुस्तक की रचना की थी तो वो भी अपनी रचनाओं के माध्यम से ईश्वर के अवतार बने पाखंडी धर्म गुरुओं और महात्माओं को चुनौती देने की चाहत रखते हैं।
लिमका ने बोला 'थैंक्स'
शिवकुमार ने इसी वर्ष जुलाई में अपनी रचना की जानकारी 'लिम्का बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्डस' को भेजी। उनके मेल के जवाब में लिम्का बुक के संपादक विजय घोष ने शिवकुमार की काफी प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि ऐसी कोई श्रेणी नहीं होने से वे उनकी प्रवृष्टि को शामिल नहीं कर पा रहे हैं। परंतु ऐसी विशिष्ट रचना के लिए लिम्का आपको थैंक्स करता है।
गिनीज बुक ने दिया आश्वासन
शिवकुमार ने लिम्का के बाद अगले महीने अगस्त में गिनीज बुक को भी अपनी तीन अक्षरी (र-क-स) रामायण की जानकारी दी और गिनीज बुक में जगह देने की बात कही। इसके बाद गिनीज बुक के गलोबल टैलेंट मैनेजर विन शर्मा ने व्यक्तिगत रूप से उनकी प्रशंसा की और कहा कि ऐसी अनोखी रचनाओं को जगह मिलनी चाहिए। उन्होने अधिक जानकारी और टीम को बताने के लिए अधिक समय लेने की बात कही।
नार्वे और शिकागो तक पहुंची बात
अंतर्राष्ट्रीय रामायण सम्मेलन कराने सहित कई पुस्तकों का संपादन करने वाले नवल अगिनहोत्री भी शिवकुमार की रचना से प्रभावित हैं। नवल शिकागो में रहते हैं. यहीं नहीं शिवकुमार की एक अन्य रचना 'पवित्र साम्यवाद का अर्थशास्त्र' की बात नार्वे नोबल संस्था तक पहुंची है। शिवकुमार ने इस रचना की जानकारी संस्था को दी। शिवकुमार की पहली रनचा 'हां, मैं सांप्रदायिक हूं' रही है।
तीन अक्षरी रामायण की एक चौपाई
"साधु रूप को सच्चा समझती स्त्री, कहो कहां की रहती कपटी राक्षस केवल साधु रूप रचे रहते, सीधी स्त्री सदा रोया करती संदेही समाज सदा संदेह किया करता, साजन से कटा रहती साधु रूप का सम्मान करती स्त्री, श्मशान की सूखी काठ सी रहती"
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