आज का दौर कम समय में अधिक काम करने का है, बिना ज्यादा थके अधिकतम परिणाम पाने की प्रतिस्पर्धा है। टाइम मैनेजमेंट आज के दौर की सबसे बड़ी मांग है। किसी भी कर्मचारी से कंपनी तभी खुश है जब वह कम प्रयासों और न्यूनतम समय में अधिकतम परिणाम देता है।
सुंदरकाण्ड में प्रसंग आता है हनुमानजी जैसे ही लंका के लिए चले सबसे पहले उड़ते हुए आंजनेय के सामने सुरसा नामक राक्षसी सामने आती है। इन्हें खाने के लिए उस राक्षसी ने अपना मुंह बड़ा करके खोला तो इन्होंने भी अपने रूप को बड़ा कर लिया। फिर छोटे बनकर उसके मुंह में प्रवेश किया और बाहर निकल गए।
सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा। अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा।
जैसे-जैसे सुरसा मुख का विस्तार बढ़ाती थी हनुमानजी इसका दुगुना रूप दिखलाते थे। उसने सो योजन (सौ कोस का) मुख किया। तब हनुमान ने बहुत ही छोटा रूप धारण कर लिया।
इस आचरण से उन्होंने बताया कि जीवन में किसी से बड़ा बनकर नहीं जीता जा सकता। लघुरूप होने का अर्थ है नम्रता! जो सदैव विजय दिलाएगी। इस प्रसंग में जीवन-प्रबंधन का एक और महत्वपूर्ण संकते है। हनुमानजी चाहते तो सुरसा से युद्ध कर सकते थे, लेकिन उन्होंने विचार किया मेरा लक्ष्य इससे युद्ध करना नहीं है, इसमें समय और ऊर्जा दोनों नष्ट होंगे, लक्ष्य है सीता शोध।
इसे कहते हैं सहजबुद्धि (कॉमनसेंस)। समय और ऊर्जा बचाने का एक माध्यम शब्द भी हैं इसलिए जीवन में मौन भी साधा जाए। हनुमानजी सुरसा के सामने मौन हो गए थे। एक संत हैं रविशंकर महाराज रावतपुरा सरकार, वे कम बोलने के लिए जाने जाते हैं। पूरी तरह मौनी भी नहीं हैं पर छानकर बोलने की कला भी जानते हैं। कम शब्द की वाणी भीतरी सद्भाव से पूरे व्यक्तित्व को सुगंधित कर देती है और इसीलिए जाते-जाते सुरसा हनुमानजी को आशीर्वाद दे गई
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
19 नवंबर 2011
हनुमानजी से सीखिए, कम समय और मेहनत में कैसे पाएं ज्यादा परिणाम
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