उदयपुर प्रवास के दौरान भास्कर से एक मुलाकात में उन्होंने कहा कि अगर सरकार रुचि दिखाए तो वे यहां की झीलों में फ्रेश वाटर पर्ल कल्चर फार्म विकसित कर सकते हैं। फिलहाल डॉ. सोनकर उदयपुर शहर और बाहरी इलाकों में स्थित जल स्रोतों के जल और उसमें मौजूद जलीय जीवों के अध्ययन की तैयारी में हैं। इस बाबत उनकी टीम कुछ नमूने अपने साथ भी ले गई है।
प्रारंभिक पड़ताल में डॉ. सोनकर का मानना है कि यहीं की झीलों का जल फ्रेश वाटर पर्ल कल्चर के माकूल है।बस इन जलस्रोतों में पर्ल कल्चर के लिए उपयुक्त मसल्स (सीपी) की ब्रीडिंग कराकर उन्हें बड़ी संख्या में तैयार करना है।
पर्ल कल्चर के फायदे
पर्ल कल्चर प्रोजेक्ट इंवायरमेंट फ्रैंडली है। इसके दोहरे फायदे होंगे, पहला इसका सीधा व्यावसायिक फायदा तो दूसरा ये पर्ल कल्चर फार्म हाउस पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र होंगे।
वे कहते हैं कि उदयपुर पर्यटकों को राजा रानी की कहानी, शानदार मॉन्यूमेंट्स के लिए तो जाना ही जाता है। अगर इसमें रत्न और जुड़ जाए तो सोने में सुहागा हो जाएगा। इस तरह के पर्ल कल्चर फार्म हाउस अभी केवल समुद्र इलाकों में ही हैं। उप्र के मूल निवासी डॉ. सोनकर फिलहाल पोर्ट ब्लेयर में रहते हैं, जहां उनके रिसर्च प्रोजेक्ट चल रहे हैं।
फ्रेश वाटर पर्ल कल्चर
डॉ. अजय सोनकर ने 1991 में यह तकनीक विकसित की थी। 1993 में इस तकनीकी से दुनिया का पहला कल्चर्ड फ्रेश वाटर पर्ल मोती हिन्दुस्तान में जन्मा था। इस उपलब्धि के लिए वर्ल्ड अक्वाकल्चर सोसाइटी ने डॉ. सोनकर को रिसर्च पेपर पढ़ने के लिए अमेरिका आमंत्रित किया था।
इस तकनीकी के तहत लैमिलीडेन्स मार्जिनलस प्रजाति के मसल्स को ऑपरेट करके उसके मेंटल में न्यूक्लियस इंप्लांट किया जाता है। मसल्स का इम्यून सिस्टम न्यूक्लियस (फारेन बाड़ी) से बचाव के लिए सोडियम काबरेनेट स्रावित करता है।
सोडियम काबरेनेट की परतें न्यूक्लियस पर चढ़ती जाती है जो कालान्तर में मोती का रूप ले लेती हैं। इसमें करीब वर्ष भर लग जाते हैं। एक मसल्स में एक से अधिक मोती और एक बार से अधिक मोती तैयार किए जा सकते हैं। इस पूरी सर्जरी में मसल्स की मौत भी नहीं होती। खास बात यह भी है कि यह मसल्स जल को प्रदूषण से मुक्त भी करता है।
डॉ. अजय सोनकर पारिवारिक फार्म हाउस से अंतरराष्ट्रीय क्षितिज तक
डॉ अजय सोनकर ने अपने पारिवारिक फार्म हाउस (पहली प्रयोगशाला) से अपने प्रयोगों की शुरुआत क ी। फ्रेश वाटर पर्ल कल्चर के क्षैत्र में उनका योगदान अतुलनीय है। इसी योगदान के कारण उनके रिसर्च पेपर जर्नल्स ऑफ शेल फिश, वर्ल्ड एक्वा कल्चर, एक्वा कल्चर मैगज़ीन, पर्ल कल्चर जैसी कई प्रतिष्ठित जर्नल्स व मैगज़ींस मे प्रकाशित हुए।
पर्ल कल्चर के क्षत्र में महत्वपूर्ण योगदान के कारण उन्हें पर्ल 94 - यूएसए, वर्ल्ड एक्वा कल्चर 96- बैंकाक , वर्ल्ड एक्वा कल्चर 98- लॉस वेगस(यूएसए),व वर्ल्ड एक्वा कल्चर 2005 - इंडोनेशिया समेत कई अन्तरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेन्सों मे आमंत्रित भी किया गया।
महज 29 साल की उम्र में उत्तरप्रदेश के जौनपुर विश्वविद्यालय द्वारा मानद डॉक्टर व बुंदेलखण्ड़ विश्वविद्यालय द्वारा मानद आचार्य अलंकरण की उपाधि भी प्रदान की गई है। डॉ. सोनकर को स्वदेशी न्यूक्लियस तकनीकी विकसित करने का श्रेय है।
इसके साथ ही उन्होंने पर्ल कल्चर की दिशा में न्यूक्लियस को लेकर जापान का एकाधिकार समाप्त कर दिया। गौरतलब है कि बिना न्यूक्लियस की मदद के राउन्ड पर्ल, कल्चर करना संभव नहीं है। पर्ल प्रोफेसर जैसे कुछ प्रकाशनों और विदेशी वैज्ञानिकों ने डॉ. सोनकर की उपलब्धियों पर अंगुलियां भी उठाई, मगर एक्वा कल्चर से जुड़े वरिष्ठ अन्तरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों और जर्नल्स ने संदेहों को खारिज कर दिया।
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