सिक्ख धर्म का इतिहास साहस, पराक्रम और त्याग से भरा है। अगर हम इस इतिहास के सुनहरे पन्ने को पलटते हैं तो उसमें दसवें गुरू गोविंद सिंह और उनके परिवार के संघर्ष की कहानी मिलती है। फौजदार वजीर खान ने उनके दो बेटों को 12 दिसंबर 1705 को पंजाब के फतेहगढ़ साहिब में जिंदा दीवार में चुनवा दिया था। आज यह पवित्र स्थल सिक्खों की श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक है। आज भी यहां उसका शहीदी दिवस लोग पूरी श्रद्धा से मनाते हैं।
गुरूद्वारा फतेहगढ़ साहिब
पंजाब के फतेहगढ़ साहिब जिला को यदि गुरूद्वारों का शहर कहा जाए तो गलत नहीं होगा। यहां अनेक गुरूद्वारे हैं जिनमें गुरूद्वारा फतेहगढ़ साहिब का विशेष महत्व है। सरहिंद-मोरिंदा रोड पर स्थित इस गुरूद्वारे में भक्तों का तांता लगा रहता है। यहां आने वाले लोग उस स्थान को देखते हैं जहां माता गुजरी के दो पोतों, साहिबजादा जोरावर सिंह और फतेह सिंह को दीवार में जिंदा चुनवा दिया गया था। इसके साथ ही उस ऊंचे स्थान को देख नमन किया जा सकता है जहां वे खड़े हुए थे और उस जगह को भी जहां उन्होंने अंतिम सांसे ली थी। यूं तो यहां साल भर भक्तों की भीड़ रहती है परंतु जोर मेला, गुरू नानक देव जी का प्रकाश उत्सव, बाबा जोरावर और फतेह सिंह का शहीदी दिवस के समय यहां विशेष रौनक रहती है।
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