अब वे उनकी याद में संस्था चला रहे हैं या फिर लोगों को यातायात के नियमों की जानकारी दे रहे हैं ताकि भविष्य में अपनों को खोने का दर्द सहना नहीं पड़े। वे संदेश देना चाहते हैं कि ड्राइव करते समय खुद के साथ-साथ परिजनों के बारे में भी सोचें।
याद रखें, कोई इंतजार कर रहा है
आज हर कोई तेज स्पीड में ड्राइव कर रहा है। जल्दबाजी में छोटी-सी चूक से बड़ा हादसा हो जाता है। हर व्यक्ति को अपनी स्पीड कंट्रोल करनी होगी। उसे जानना होगा, जब वह घर से निकलता है। वह अकेला नहीं है।
पीछे लोग उसका इंतजार कर रहे हैं। राजस्थान यूनिवर्सिटी में लॉ डिपार्टमेंट की लेक्चरर डॉ. सोनिया दत्त शर्मा कहती हैं, दुर्घटना में मां को खोने के बाद उन्हें यह ख्याल आता है। जब वे खुद ड्राइव कर रही होती हैं तो अपने डेढ़ साल के बेटे के बारे में जरूर सोचती हैं। ट्रैफिक रूल्स का पालन करती हैं ताकि जरा सी भूल से उनके बेटे को अपनी मां को खोना नहीं पड़े ।
उनकी मां की डेथ एक्सीडेंट में उस समय हुई थी जब वे पापा के साथ मैरिज एनिवर्सरी पर मंदिर से दर्शन करके लौट रही थीं। पीछे से उन्हें किसी ने हिट कर दिया। उनकी डेथ हो गई। रविवार को उनका जन्मदिन भी है। इस दिन ही यह डे सेलिब्रेट किया जा रहा है। इस दिन वो मुझे बार-बार याद आएंगी।
बेटी के नाम पर खोली एकेडमी
7 जनवरी 2008 को बेटी इंजीनियरिंग कॉलेज से घर लौट रही थी। रिद्धि-सिद्धि चौराहे पर ट्रक ने पीछे से टक्कर मार दी। उसकी ऑन दि स्पॉट डेथ हो गई। गवर्नमेंट सड़कें चौड़ी करे साथ ही ट्रक चालकों को ट्रेंड किया जाए।
स्पीड लिमिट कंट्रोल हो। बिजनेसमैन सुनील भार्गव कहते हैं, बेटी को खोने का दर्द हमेशा सताता रहता है। वह चेस प्लेयर भी थी। उसके नाम पर चेस एकेडमी खोली है। इसमें हर रविवार सुबह 10 से 5 बजे तक चेस खेलना फ्री सिखाया जाता है। साल में एक बार साक्षी मेमोरियल टूर्नामेंट करवाते हैं।
लाइफ सेविंग कोर्स की ट्रेनिंग
जेके लोन से रिटायर डॉ. माया टंडन कहती हैं, आईसीयू में अधिकतर एक्सीडेंट वाले पेशेंट होते थे। उनकी देखरेख में पूरा समय गुजर जाता था। डेथ होने पर बहुत दुख होता था। पति को एक्सीडेंट के बारे में लोगों को अवेयर करने का शौक था।
उन्होंने रिटायरमेंट के बाद लोगों को ट्रैफिक रूल्स के प्रति अवेयर करने का मानस बनाया। पति के नाम पर डॉ. एमएन टंडन मेमोरियल चेरिटेबल ट्रस्ट भी बनाया। वे उसकी चेयरमैन हैं। इसके जरिए वे लोगों को लाइफ सेविंग कोर्स सिखाती हैं।
इसमें लोगों को एक्सीडेंट होने पर व्यक्ति की देखरेख करने के लिए ट्रेंड किया जाता है। लोगों को बताया जाता है, सुप्रीम कोर्ट के नियमानुसार जब तक पेशेंट के परिजन नहीं आ जाएं, तब तक हॉस्पिटल में उसकी देखरेख करें।
पेरेंट्स ही रोक सकते हैं यंग डेथ
11 साल पहले बेटी की एक्सीडेंट में डेथ हो गई। कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसका स्कूल टीचर आया और कहा, क्यों न रोड सेफ्टी के बारे में बच्चों को अवेयर करने के लिए एक संस्था खोली जाए। 1999 में एक्सीडेंट से कई बच्चों की डेथ हो चुकी थी।
बेटी की फ्रेंड्स ने भी उन्हें इस बारे में सलाह दी। मुस्कान संस्थान के मैनेजिंग ट्रस्टी प्रमोद भसीन कहते हैं, उनकी सलाह को मानते हुए 12 दिन में संस्था बना दी।
दस साल से लगातार बच्चों को अवेयर कर रही है। वे संदेश देना चाहते हैं, जब तक बच्चे मैच्योर और व्हीकल चलाने में परफेक्ट नहीं हो जाएं, उन्हें व्हीकल चलाने की परमिशन नहीं दें। तभी यंग डेथ को कंट्रोल किया जा सकता है।
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