तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
26 नवंबर 2011
मुझे शर्म आती है के में देश का कमजोर नागरिक और कमजोर वकील हूँ
जी हाँ दोस्तों में पेशे से वकील हूँ इसके पहले पत्रकारिता से भी लगातार जुडा रहा हूँ खुद को कुछ क्रांतिकारी खबरें और आलेख लिखने के बाद में तीस मारखां समझता रहा हूँ ..मुझे गलत फहमी थी के में एक राष्ट्रवादी हूँ और देश की एकता अखंडता के लियें सब कुछ कुर्बान कर सकता हूँ लेकिन मेने जब देश में भाषा ... क्षेत्रवाद ..पार्टियाँ ..जातियां और धर्म अधर्म के विवाद देखे तो में थोड़ा ठिठका और सोचा चलो इस मामले में सरकार पर दबाव बनाते रहे आज नहीं तो कल सरकार को अकाल आएगी और देश को तोड़ने वाले तथा कथित राष्ट्रभक्तों को जेल में डाल कर देश की एकता और अखंडता की सुरक्षा की जायेगी ..फिर में देश के और राज्यों के सभी कानूनों को पढने लगा मेने संविधान पढ़ा देश के सभी कानून पढ़े और मेरा मन आहत होता गया होता गया हमारे देश का नारा है कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक है कश्मीर के सांसद हमारी सरकार बनाते हैं ..केंद्र में मंत्री बनते है दिल्ली की लोकसभा में नारे बाज़ी की जाती है दिल्ली सरकार ही कश्मीर का निजाम देखती है ... लेकिन देश के हर कानून में जब देखते है के यह कानून जम्मू कश्मीर के सिवाय पुरे भारत में लागू होगा तो मेरा मन तडप उठता है शुरू में में पत्रकार था कई लेख लिखे फिर वकील और समाजसेवक बना तो प्रधानमन्त्री ..राष्ट्रपति ..कोंग्रेस भाजपा के नेताओं को पत्र लिखे लेकिन एक पत्र का भी जवाब नहीं आया कितनी अजीब बात है के एक तरफ देश के वकीलों ने पत्रकारों ने आज़ादी के आन्दोलन में विशिष्ठ भूमिका निभाकर पुरे देश को अंग्रेजों के चंगुल से आज़ाद करा दिया था और आज छ से भी अधिक दशक गुजरने के बाद कश्मीर को हम अपना अभिन्न अंग नहीं बना सके है अमेरिका हे के अक्सर भारत के नक्शे से कश्मीर को उड़ा देता है और देश का कानून है के जब कानून बनाता है तो कानून की पहली धारा में लिखता है के यह कानून जम्मू और कश्मीर के सिवाय पुरे भारत में लागू होगा बस यही पंक्तियाँ मुझे खून के आंसू रुलाती है में चाहता हूँ के देश के हर कानून से यह पंक्तियाँ हटा दी जाएँ और देश का कानून पुरे देश में यानी कश्मीर में भी एक साथ लागू किया जाए इसके लियें मेने कई किलों पत्र लिखे है ॥ कई बार प्रयास किये हैं लेकिन सभी रद्दी टोकरी में गये है और अब में खुद को असफल असहाय समझने लगा हूँ मुझे खुद के इस तरह से कमजोर नागरिक और कमजोर वकील होने पर शर्म सी आने लगी है क्या आप मेरी मदद करोगे ........ अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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विचारणीय आलेख ....समय मिले कभी तो आयेगा मृ पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंआपकी पीड़ा जायज है पर इस देश में तो सभी राजनैतिक निर्णय वोट बैंक या अपने फायदे के हिसाब से लिए जाते है|
जवाब देंहटाएंकश्मीर के मामले में एक कथित महान नेता की व्यक्तिगत अरुचि और नासमझी का नुक्सान यह देश आजतक भुगत रहा है|
और मज़बूरी यह कि हम कुछ भी कर नहीं सकते!!