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11 सितंबर 2011

दागे अवधिपार गोले



kota news

कोटा/मोड़क। जिले के ढाबादेह में शुक्रवार रात उपजे हालात से निपटने के लिए पुलिस की ओर से फेंके गए अश्रुगैस के गोलों में से कई जवाब दे गए। अवधिपार होने से ये गोले नहीं फटे।

लोग इनसे 'खिलौनों' की तरह खेलते नजर आए। सूत्रों ने बताया कि स्पेशल टॉस्क फोर्स [एसटीएफ] द्वारा फेंके गए 'त्रिदिशा अश्रुगैस हथगोलों' में से कई की मियाद दिसम्बर, 2008 में ही खत्म हो चुकी थी। इन गोलों पर 'डेट ऑफ एक्सपायरी' में साफ शब्दों में दिसम्बर, 2008 लिखा हुआ है। तीन साल पहले अवधिपार होने के बावजूद इनका इस्तेमाल किया गया और नतीजतन ये नकारा साबित हुए।

हालांकि मौके पर वज्र व गन के माध्यम से फेंके गए गोलों ने स्थिति को काबू में कर लिया। उधर, इस संबंध में पुलिस के अधिकारिक सूत्रों ने कहा, वैसे तो समय-समय पर अवधिपार गोलों का निस्तारण कर दिया जाता है, लेकिन फिर भी स्थिति के हिसाब से ऎसे गोले रख लिए जाते हैं, जो चलने की स्थिति में हो। क्योंकि आम तौर पर अवधिपार होने की तिथि से तीन से सात साल बाद तक ये चल जाते हैं।

यह होता है उपयोग
टेकनपुर [मध्यप्रदेश] में निर्मित 'त्रिदिशा अश्रुगैस हथगोलों' का इस्तेमाल भीड़ के काफी नजदीक आने के बाद किया जाता है। जानकारों के मुताबिक जब भीड़ नजदीक हो तो उस स्थिति में वज्र या गन से फेंके जाने वाले गोले चोटग्रस्त कर सकते हैं। ऎसे में इन हथगोलों का इस्तेमाल किया जाता है। इन गोलों में एक पिन लगी होती है।

उसे खोलकर कुछ देर के लिए इसके स्विच को हाथ से दबा लिया जाता है। जैसे ही इसे फेंका जाता है तो यह कुछ देर में फट जाता है। फटने के बाद इसकी गैस तीन दिशाओं में निकलकर भीड़ को परेशान करना शुरू कर देती है और भीड़ छंट जाती है।


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