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20 जुलाई 2011

यूनिक आई डी कार्ड को लेकर लोगों की अटकलें

देश की जनसंख्या की गिनती के साथ इन्डियन सेन्सस एक्ट के विधिक प्रावधान और लोकप्रतिनिधित्व प्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत अब जब नए यूनिक आई कार्ड बनाये जा रहे हैं तो एक तरफ तो इन कार्डों को बनवाने को लेकर आम लोगों में उत्साह है तो दूसरी तरफ कुछ बुद्धिजीवियों के बीच में अटकलें भी जारी हैं .....कोटा में वकीलों ने अदालत परिसर में यूनिक आई कार्ड बनवाने का एक शिविर लगवाया जो केवल वकीलों और उनके परिजनों के लियें था ..इस शिविर की शुरुआत में तो थोड़ी बाधाएं आयीं और फिर अटकलों का बाज़ार गर्म हो गया जो इन कार्ड को बनवा कर आया उनका कहना था के कार्ड बनवाने के नाम पर देश के नागरिकों का रिकोर्ड अपराध नियंत्रण और निरिक्षण को लेकर तय्यार किया जा रहा है एक भाई का कहना था के उँगलियों और अंगूठों के निशान के अलावा आँखों की छाप सिर्फ इसलियें ली जा रही है के किसी भी घटना के बाद अंगुली चिन्ह के आधार पर वारदात करने वाला इस कम्प्यूटर रिकोर्ड से पकड़ा जाएगा और नहीं तो आँखों की तस्वीर दिखा कर ऐसे चेहरों की वारदात के चश्मदीद लोगों से शिनाख्त करवाकर की जा सकेगी .............कुल मिलाकर एक सोच यह थी के यूनिक कार्ड केवल अपराध नियन्त्रण और निरिक्षण की द्रष्टि से तय्यार किये जा रहे हैं और यही वजह है के उसमे महत्वपूर्ण जानकारियां जेसे ब्लड ग्रुप ,इंशोरेंस,वगेरा का कोलम नहीं है केवल पते के लियें तो फोटो पहचान पात्र ही काफी था ..बात आगे बढ़ी के यूनिक कार्ड बनाने के ठेके में भी सरकार की और मंत्रियों नेताओं की बल्ले बल्ले हो गयी है एक बढ़ा घोटाला हो सकता है ....बेंक और बरोदा ओर सेन्ट्रल बेंक ऑफ़ इण्डिया को इस मामले में ठेका दिया गया है जो पेटी कोंत्रेक्त पर ठेके पर से ठेके पर छोटे ठेकेदारों तक चेन बन गयी है नतीजन यूनिक कार्ड का रिकोर्ड गोपनीय और सुरक्षित रहेगा इस पर भी प्रश्न चिंह है ........इधर यूनिक कार्ड बनाने वाले नोसिखिये ठेके कर्मचारी लोगों की जिन आँखों में लेंस डाले हैं उनके यूनिक कार्ड नहीं बना पा रहे हैं जबकि जिनकी उंगलियाँ कटी हुई हैं या क्षतिग्रस्त हैं उनको भी कार्ड बना कर नहीं दिया गया है ..यूनिक कार्ड के पीछे सरकार का मंतव्य किया है यह तो वाही जाने लेकिन आधी अधूरी जानकारी वाले कार्ड महंगे खर्च पर बनवाकर सरकार इसी कहावत को चरितार्थ कर रही है के कव्वा चले हंस की चाल अपनी भी चाल भूल जाता है क्योंकि यह कार्ड विदेशों में जहां इंटरनेट और कम्प्यूटर तकनीक मजबूत है वहां कारगर हैं खिन ऐसा ना हो के हम फोटो पहचान पत्र की खट्टी छाछ से भी चले जाए खेर सरकार है जो जेसा चाहे जनता को विश्वास में लियें बगेर , जनता के सुझाव लियें बगेर इस लोकतंत्र में लोकतंत्र का गला घोंट कर कार्यवाही कर सकती है ............अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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