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08 जून 2010

जियो लाइफ का एक अनूठा अनुभव

दोस्तों जियो लाइफ कंटेस्ट देख कर पहले मेरे मन में भी आया के में भी इस में अपनी एंट्री करूं लेकिन बाद में सोचा के अपन तो अपनी लाइफ जी रहे हें फिर इसमें अंतरी क्यूँ करें खेर इनकार करने के आड़ भी इकरार करने की हम भारतीयों की पुरानी आदत हे इसलियें एक लम्हे एक क्षण के हालात में आपको ब्यान करता हूँ मेरी पत्नी ने मुझसे करीब १२ साल पहले मुझसे नई मोटर बाइक (मोटर साइकल ) खरीदने के लियें कहा मेने ऐसे ही लापरवाही से जवाब दिया के अभी मेरे पास पेसे थी हें जब आयेंगें तब खरीद लूंगा तब तक पुरानी से ही काम चला रहा हूँ उस वक्त मेरी बेटी जवेरिया अख्तर ६ साल की थी वोह यह सब सुन रही ही जब में अपने ओफिस से घर आयाओर मेने कपड़े बदल कर अपनी पेंट हेंगर पर टांकी सुभ जब में वापस अदालत आने लगा और मेने पेंट पहनी तो मुझे पेंट की जेबें भारी लगीं पेंट की जेबें भारी देख कर में ठिठक गया और जेसे ही जेब में हाथ दलातो उसमें गुच्ड़े मुचड़े मुड़े हुए नोट और काफी रेजगारी भरी हुई थी सुभ का वक्त था मेने देखा मेरी बिटिया गहरी नींद में सो रही थी लेकिन जब मेने बाहर आंगन में देखा तो वहां मेरी बिटिया का गुल्लक टूटा हुआ पढ़ा था , तो जनाब मेरी बिटिया ने हम पीटीआई पत्नी की बाते सुन ली थीं और उस मासूम ने उसे सच समझ कर उसका गुल्लक जिसमे वोह सबसे रो धोकर पेसे जमा करती थी और गुल्लक को अपनी जान से भी ज़्यादा हमेशां सीने से लगा कर रखती थी उसी गुल्लक को उसने बाप की बात सुन कर आधी रात को उठ कर तोड़ दिया और उसके सारे पेसे मेरी जेब में यह समझ कर rkh दिए की शायद इन पैसों से नई मोटर साइकल आ जायेगी तो दोस्तों महसूस करो उस वक्त लम्हे पर एक बाप को जीवन का केसा आनन्द मिला होगा के उसकी मासूम बेटी अभी से बाप के बारे में कितना सोचती हे मेरे लियें मेरी जिंदगी का वोह सबसे बेहतरीन जियो जिंदगी का लम्हा था और में सोचता रहा के कोन कहता के बेटियाँ परायी होती बेतिया बोझ होती हें में कहता हूँ बेटियाँ तो ,घर को जन्नत बना देती हें तो दोस्तों इंडियन ब्लोगर्स में यह अंतरी होती हे या नहीं मुझे नहीं पता लेकिन इस एंट्री के संदेश ने मुझे जियो लाइफ का वोह लम्हा याद दिला दिया जो मेरी जिंदगी का सबसे बेहतरीन लम्हा था। अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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