आपका-अख्तर खान

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17 जून 2010

मुझे भी नेता बना दो यार

दोस्तों में भी नेता बनू यह सोच कर मेने नेता बनने के अपने प्रयास तेज़ कर दिए सोचा गरीबों की सेवा करूंगा अत्याचार के खिलाफ लडूंगा तो जनता मुझे जल्दी स्वीकारेगी इसलियें समाज सेवा के साथज़ुल्म के खिलाफ लढाई में में कूद पढ़ा कई बार मेरे अपने मेरे दुश्मन हो गये फिर एक राजनितिक पार्टी के नेताजी अंकल से बात हुई उन्होंने खा के भाई तुम छोले भटूरे की दूकान खोल लो लेकिन नेतागिरी के बारे में मत सोचो क्योंकि तुम नेता नहीं बन सकते मेने सवाल क्या के क्यूँ में नेता क्यूँ नही बन सकता, जवाब था के तुम अपना दिमाग स्तेमाल करते हो राजनीति में ऐसे लोगो की जरूरत नहीं वहां तो केवल रिमोट से चलने वाले रोबोट चाहियें जेसे के में, उन्होंने कहा देखो तुम वर्षों से समाज सेवा कर रहे हो हजारों लोगों को दुश्मन बना चुके हो हजारों गरीबों पीड़ितों को न्याय दिला चुके हो फिर भी में तुम से बेहतर तुम से चर्चित समाज में पथ रखने वाला नेता हूँ। मेरी नेताजी की बात समझ में नही आई मेने कोशिशें जारी रखीं एक पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को उनके जन्म दिन पर जीतें साल की वोह थीं उससे दुगने हजार की माला उनके गले में दाल दी में सोचता था के अब अपन देश की नेता गिरी की मुख्यधारा में रिश्वत देकर शामिल हो गये हें हमें इस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बनाने का वादा क्या रस्म के तोर पर पर्यवेक्षक राजस्थान में आये उन्हें हमने महंगी होटल में ठराया अपनी कार में घुमाया रास्ते में चलते पर्यवेक्षक जी ने मेरा नियुक्ति पत्र मुझे दिखाया और कहा के प्रेस कोंफ्रेंस करा कर इस नियुक्ति की घोषणा करेंगे में भुत खुश की अब में भी मुख्यधारा में जुड़ गया हूँ और अपना दिमाग लगाने के बाद भी राजनीति में आ रहा हूँ मेने कार में से ही हमारे अंकल नेता जी को फोन किया और घमंड से साफ़ कहा के देखो कुछ लोग हे जो अभी भी अक्लमन्दों को साथ र्त्ख कर खुश होते हें नेताजी ने फिर राग अलापा और कहा के बच्चू अभी बच्चे हो धीरे धीरे सब समझ जाओगे कुछ देर में ही हमारी कार में बेठे पर्यवेक्षक ने सवाल किया और एक मस्जिद की तरफ हाथ बढाया के देखो यह मस्जिद अगर कोई जला रहा हो और अपने नेताजी इस मामले में आपको बोलने से रोक दें तो क्या करोगे अचानक इस सवाल का जवाब में दे ना सका और सोच ही रहा था के अचानक पर्यवेक्षक जी ने दुसरा सवाल एक झोंपड़ी की तरफ इशारा कर किया के अगर कार्यकर्ता इसकी झोंपड़ी जला रहे हों और नेता जी आपको इसकी मदद के लियें मना करें तो आप की प्रतिक्रिया क्या रहेगी में कुछ बोलता इतनी देर में ही पर्यवेक्षक जी नें नीम का पेढ़ दिखा कर इशारा करते हुए पूंछा के अगर नेता जी इसे बढ़ का पेढ़ कहें तो तुम क्या कहोगे में बोलता इसके पहले ही मेरा ड्रायवर बोल पढ़ा के साहब कहना क्या हे नेताजी जो कहेंगे वोह ही अंतिम सच हे फिर चाहे जनता जाए भाड़ में लेकिन में बोल पढ़ा के साहब नीम के पेढ़ को तो नीम का ही पेढ़ कहना पढ़ेगा इसे बढ़ का पढ़ केसे कह सकते हें रहा सवाल मस्जिद का तो यह मेरी आस्था हे मस्जिद क्या मन्दिर भी कोई जलाएगा तो में तो उसके खिलाफ ही रहूंगा साथ ही गरीब की झोंपड़ी का जो सवाल हे उसे तो झ्लाने वाले को किसी भी सुरत में नहीं छोड़ा जाएगा फिर चाहे वोह अपनी पार्टी का ही कार्यकर्ता या नेता क्यूँ नहीं हो जनाब आपको यकीन आये या ना आये लेकिन यह सच हे के पर्यवेक्षक जी आग बबूला हो गये और कार रुकवा कर निचे उतरते हुए उन्होंने मुझ से कहा की तुम राजनीति के लायक नहीं नेताजी तुम्हें पसंद नहीं करेंगे लेकिन उन्होंने मेरे ड्रायवर से कहा के तुम अब ड्रायवर की नोकरी छोड़ो तुम हमारी पार्टी के आजा से प्रदेश अध्यक्ष हो बस जनाब इस तरह से मुझे राजनीति ने ठुकरा दिया वरना हम भी आज आदमी काम के होते। हेना मेरी राजनीति से बे आबरू होकर निकलने की दिल चस्प कहानी लेकिन दोस्तों आप बताइए मेने यह सही किया या गलत? अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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