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22 मई 2010

सरकारी और गेर सरकारी प्रबंध में अंतर

देश में सरकारी और गेर सरकारी प्रबंध में फर्क की जब भी बात चलती हे तो लोग कहते हें जो ठीक चले वोह गेर सरकारी और जो रो रो के चले वोह सरकारी बात सही भी हे आप खुद ही देखिये सरकारी फेक्ट्री होगी तो उमें मजदूर अफसर ज़्यादा होंगे और घाटा चरम सीमा पर होगा जबकि व्ही उद्योग अगर गेर सरकारी होगा तो फिर उसमें मजदूर अफसर भी कम होंगे इसके बावजूद भी उसमें गुणवत्ता वाला उत्पादन और भरी मुनाफा होगा। आप देखिये जापान की कम्पनी मेट्रो ट्रेन और मुंबई की लोकल ट्रेन की सर्विस मुनाफे का फर्क, इसी तरह सरकारी रोडवेज़ जिसकी सर्विस घटिया कमजोर अव्यवस्थित घातेवाली होती हे और निजी बसों के मालिक उसी रूट पर सरकार को अधिकतम अतिरिक्त टेक्स देकर भी कम किरायें में नई बसों का मजा देकर काफी मुनाफ़ा कमाते हें , सरकारी अस्पतालों का हाल देखिये काबिल चिकित्सक नर्सिंग स्टाफ भवन उपकरण होते हें लेकिन मरीज़ को सरकारी अस्प्ता से निजी अस्पतालों में भेजा जाता हे जहां सरकार के सफाई कर्मचारी के मुकाबले में आधी तनख्वाह लेने वाला कर्मचारी होता हे लेकिन वोह सरकारी अस्पताल के मुकाबले निजी अस्पताल को चमाचम रखता हे निजी अस्पतालों की सेवाएं देख कर वहन मोती फ़ीस देकर भी लोग भीड़ बढाते हें जबकि सरकारी व्यवस्था के तहत चलने वाले अस्पतालों में ओत के सिवा कुछ नहीं मिलता हे इसी तरह से इंडियन डाक सेवा जहां रजिस्ट्री,पार्सल,स्पिद्पोस्ट की मोती रकम लेकर भी यह गारंटी नहीं के डाक कब पहुंचेगी जबकि निजी गेर सरकारी कोरियर सेवाएं सरकारी खर्च से आधे स भी कम में उर्न्त और विशवास डाक,पार्सल पहुंचा देते हें सरकारी वायो सेवा सभी रिस्क लेकर मोट बांटती हे जबकि निजी हवाई सेवाएं तुरंत रिस्क के बगेर सेवाएं देती हें , निजी स्कूलों में सरकार के टीचरों से आधी तनख्वाह पाने वाले तिहर होते हें फिर भी सरकारी स्कूल जीरो और निजी स्कूल हीरो हें अब आप ही बताएं की ऐसी सरकार का क्या करे कोई। अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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