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11 अक्तूबर 2024

फिर मैंने उनको बिल एलान बुलाया फिर उनको ज़ाहिर ब ज़ाहिर समझाया

 सूरए नूह मक्का में नाजि़ल हुआ और इसकी उन्तीस (29) आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
हमने नूह को उसकी क़ौम के पास (पैग़म्बर बनाकर) भेजा कि क़ब्ल उसके कि उनकी क़ौम पर दर्दनाक अज़ाब आए उनको उससे डराओ (1)
तो नूह (अपनी क़ौम से) कहने लगे ऐ मेरी क़ौम मैं तो तुम्हें साफ़ साफ़ डराता (और समझाता) हूँ (2)
कि तुम लोग ख़ुदा की इबादत करो और उसी से डरो और मेरी इताअत करो (3)
ख़ुदा तुम्हारे गुनाह बख़्ष देगा और तुम्हें (मौत के) मुक़र्रर वक़्त तक बाक़ी रखेगा, बेशक जब ख़ुदा का मुक़र्रर किया हुआ वक़्त आ जाता है तो पीछे हटाया नहीं जा सकता अगर तुम समझते होते (4)
(जब लोगों ने न माना तो) अर्ज़ की परवरदिगार मैं अपनी क़ौम को (ईमान की तरफ़) बुलाता रहा (5)
लेकिन वह मेरे बुलाने से और ज़्यादा गुरेज़ ही करते रहे (6)
और मैने जब उनको बुलाया कि (ये तौबा करें और) तू उन्हें माफ़ कर दे तो उन्होने अपने कानों में उंगलियाँ दे लीं और मुझसे छिपने को कपड़े ओढ़ लिए और अड़ गए और बहुत शिद्दत से अकड़ बैठे (7)
फिर मैंने उनको बिल एलान बुलाया फिर उनको ज़ाहिर ब ज़ाहिर समझाया (8)
और उनकी पोशीदा भी फ़हमाईश की कि मैंने उनसे कहा (9)
अपने परवरदिगार से मग़फे़रत की दुआ माँगो बेशक वह बड़ा बख़्षने वाला है (10)

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