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14 अक्तूबर 2024

देर रात और अल सुबह संपन्न हुआ नैत्रदान

 देर रात और अल सुबह संपन्न हुआ नैत्रदान

2. 6 घंटे में संपन्न हुए दो देवलोकगामी के नेत्रदान


शाइन इंडिया फाउंडेशन के जागरूकता अभियान से,बीते चौदह दिनों में 12 नैत्रदान हाड़ौती संभाग में सम्पन्न हुए है । कल रविवार को देर रात चंचल बिहार कुन्हाड़ी निवासी मनीष मूंदड़ा के पिताजी रतनलाल मूंदड़ा का आकस्मिक निधन हुआ । परिजनों की स्वयं की सहमति से शाइन इंडिया फाउंडेशन को संपर्क किया गया, उसके बाद देर रात ज्योति मित्र पुलकित लड्ढा और भूमिका वेलफेयर सोसाइटी की अध्यक्षा स्मिता जैन के सहयोग से नेत्रदान का कार्य संपन्न हुआ नैत्रदान प्रक्रिया के दौरान परिवार की सभी सदस्य बेटे बहु पोते-पोती मौजूद थे । 


इसी क्रम में आज सोमवार सुबह तलवंडी निवासी अशोक व राजेश जयसिंघानी के पिताजी रमेश चंद्र जयसिंघानी के आकस्मिक निधन के उपरांत परिजनों ने नेत्रदान हेतु संस्था को संपर्क किया । सुबह जल्दी ही नेत्रदान की प्रक्रिया परिवार के सभी सदस्यों के बीच में संपन्न हुई । ज्ञात हो की,6 वर्ष पूर्व रमेश की पत्नी रेखा जयसिंघानी का भी नेत्रदान संस्था के सहयोग से संपन्न हुआ था । परिजनों का मानना है कि,नेत्रदान का कार्य देवलोकगामी को मोक्ष की प्राप्ति देता है,नेत्रदान ही दिवंगत परिजनों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है

जो भलाई की राह दिखाता है तो हम उस पर ईमान ले आए और अब तो हम किसी को अपने परवरदिगार का शरीक न बनाएँगे (

 सूरए अल जिन्न मक्का में नाजि़ल हुआ और इसकी अठाइस (28) आयतें हैं
(ऐ रसूल लोगों से) कह दो कि मेरे पास ‘वही’ आयी है कि जिनों की एक जमाअत ने (क़ुरआन को) जी लगाकर सुना तो कहने लगे कि हमने एक अजीब क़ुरआन सुना है (1)
जो भलाई की राह दिखाता है तो हम उस पर ईमान ले आए और अब तो हम किसी को अपने परवरदिगार का शरीक न बनाएँगे (2)
और ये कि हमारे परवरदिगार की शान बहुत बड़ी है उसने न (किसी को) बीवी बनाया और न बेटा बेटी (3)
और ये कि हममें से बाज़ बेवकूफ़ ख़ुदा के बारे में हद से ज़्यादा लग़ो बातें निकाला करते थे (4)
और ये कि हमारा तो ख़्याल था कि आदमी और जिन ख़ुदा की निस्बत झूठी बात नहीं बोल सकते (5)
और ये कि आदमियों में से कुछ लोग जिन्नात में से बाज़ लोगों की पनाह पकड़ा करते थे तो (इससे) उनकी सरकशी और बढ़ गयी (6)
और ये कि जैसा तुम्हारा ख़्याल है वैसा उनका भी एतक़ाद था कि ख़ुदा हरगिज़ किसी को दोबारा नहीं जि़न्दा करेगा (7)
और ये कि हमने आसमान को टटोला तो उसको भी बहुत क़वी निगेहबानों और शोलो से भरा हुआ पाया (8)
और ये कि पहले हम वहाँ बहुत से मक़ामात में (बातें) सुनने के लिए बैठा करते थे मगर अब कोई सुनना चाहे तो अपने लिए शोले तैयार पाएगा (9)
और ये कि हम नहीं समझते कि उससे अहले ज़मीन के हक़ में बुराई मक़सूद है या उनके परवरदिगार ने उनकी भलाई का इरादा किया है (10)

13 अक्तूबर 2024

1892 को स्थापित मेले दशहरे के शताब्दी वर्ष 1992 को मनाया गया, अभी 131 वां वर्ष, जोड़ बाकी करो बताओ,

 

1892 को स्थापित मेले दशहरे के शताब्दी वर्ष 1992 को मनाया गया, अभी 131 वां वर्ष, जोड़ बाकी करो बताओ,
कोटा की आम जनता आज भी वायली फेयर जो उम्मेद क्लब के बाहर अँगरेज़ की पत्नी ने शुरू किया था , उस वायली फेयर को कोटा मेला दशहरे का शुभारम्भ वर्ष कहा जाए , या फिर महाराव उम्मेद सिंह जी द्वितीय ने जो वर्तमान मेला प्रांगण में 1932 में वर्तमान मेला स्थल पर मेले और दशहरे की शुरुआत की उसे स्थापित वर्ष माना जाए ,, यह इतिहासविदों की चुप्पी के कारण आज भी , अनुत्तरित प्रश्न है ,,,
कोटा मेला दशहरा की ऐतिहासिक शुरुआत 1892 या 1893 में उम्मेद क्लब नयापुरा के वायली फेयर से हुई , या फिर किशोरपुरा मेले दाहहरे ग्राउंड में , रावण वध के साथ 1932 से हुई , यह एक ऐतिहासिक शोध का विषय है , इस मामले में एक जनहित याचिका की सुनवाई के वक़्त ,1992 में कोटा सिविल न्यायालय ने दोनों तारीखों के तथ्यों को , शोध का विषय बताते हुए नगर निगम के विरुद्ध याचिका करता एडवोकेट अख्तर खान अकेला की याचिका ख़ारिज कर दी थी ,, लेकिन मेला दशहरा की शुरुआत किस वर्ष में हुई , यह ऐतिहासिक तथ्य आज भी शोध का विषय ही बना हुआ है , किसी भी शोधार्थी , या प्रशासनिक दृष्टि से किसी अधिकारी ने इस मामले में खोजबीन कर सत्यता को नहीं परखा है , ,वर्ष 1992 में कोटा मेला दशहरा सो वर्ष पुराना होने पर इसे शताब्दी वर्ष के रूप में मनाये जाने की जब धूम मची , ,तो एडवोकेट अख्तर खान अकेला ने इसे वायली फेयर और मेला दशहरा के ऐतिहासिक तथ्यों को अलग अलग करते हुए , रोकने के लिए , कोटा जिला न्यायालय में जनहित याचिका पेश कर शताब्दी वर्ष को रोकने का आग्रह किया , ,कोटा सिविल न्यायधीश पीठासीन अधिकारी मोहम्मद अयूब के समक्ष प्रस्तुत जनहित दीवानी प्रकरण संख्या 39 /1992 बा उन्वान अख्तर खान अकेला बनाम नगर परिषद कोटा , ,राजस्थान सरकार मामले में यह प्रश्न उठाया गया था , इसक मामले में अपील भी पेश हुई थी , ,,,जो अपर जिला जज क्रम 2 कोटा महेश चंद्र पुरोहित ने निस्तारित की थी , ,याचिका कर्ता एडवोकेट अख्तर खान अकेला ने अपनी याचिका में कहा था , की कोटा में वर्ष 1932 से विजय दशमी के अवसर पर प्रत्येक वर्ष दशहरे मेले का आयोजन किया जाता है , लेकिन इस वर्ष 1992 में इस मेले को अवैध रूप से सांठ गाँठ करके शताब्दी मेला दशहरा घोषित कराकर , राज्य सरकार करों में छूट प्राप्त कर रही हैं ,, याचिका में कहा गया था कि अप्रति प्रतिवादीगण इस मेले को सन 1892 - 93 को आधार वर्ष मानकर गलत रूप से इस मेले को शताब्दी समारोह मानकर जनता को गुमराह कर रहे ,हैं , याचिका में उक्त वर्ष 1992 को शताब्दी मेला वर्ष रूप में मनाने पर रोक लगाने की मांग की गई थी , ,याचिका में अख्तर खान अकेला ने कहा कि , कोटा मेला दशहरा कोटा में 1932 में प्रारम्भ हुआ है , ऐसे में 60 वर्ष को ही गलत तरीके से शताब्दी वर्ष कहकर इतिहास बदलने का प्रयास किया जा रहा है ,, याचिका करता ने महाराव उम्मेदसिंह द्वितीय एवं उनका समय , डॉक्टर जगत नाराइन इतिहास विद की पुस्तक के पृष्ठ संख्या 237 का भी उल्लेख किया ,, डॉक्टर जगत नारायण की उक्त पुस्तक की पृष्ठ संख्या का उल्लेख किया और स्मारिका वर्ष 1964 के पृष्ठ संख्या 12 का उल्लेख किया ,, याचिका में महाराव उम्मेदसिंह द्वितीय के कार्यकाल में 1932 में मेला दशहरा प्रारम्भ होने का उल्लेख है , ,इधर इसी पुस्तक में वर्ष 1892 में महाराव उम्मेदसिंह द्वितीय के कार्यकाल में वायली फेयर के नाम से उम्मेद क्लब के बाहर कर्नल वायली की श्रीमती द्वारा दस्तकारों का मेला लगाने की शुरुआत के उल्लेख का ज़िक्र किया ,, यह वायली फेयर के नाम से मेला था जिसमे ओंकार नाथ चतुर्वेदी सचिव ने मेले में 560 चीज़ें मौजूद होने का कथन किया होना अंकित है ,, याचिका में इसी पुस्तक के पेज 238 में मेला दशहरा 1932 में उम्मेद सिंह जी द्वितीय द्वारा शुरू करना बताया जाने का हवाला भी दिया गया ,,मेले में सवारी , नुमाइशें , सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते थे , जबकि पुस्तक में इस मेले में पहले वर्ष 5000 व्यक्ति रियासत के तथा एक हज़ार व्यक्ति बाहर के आना लिखा गया है ,, प्रतिवादी ने स्मारिका 1964 में मेला दशहरा का शुभारम्भ 1893 में होना कथन किया ,, न्यायालय ने 1992 को शताब्दी वर्ष नहीं रखा जाए इस मामले में पुस्तकों के अवलोकन के बड़ा , अपनी टिप्पणी में लिखा कि मेरी राय में यह एक शोध और साक्ष्य का विषय है , इस कारण प्रथम दृष्टया मामला 1992 को मेले का शताब्दी वर्ष मनाने से रोकने का तथ्य प्रथम दृष्टया अस्वीकार किया गया , , उक्त आदेश के खिलाफ याचिका कर्ता ने जिला एवं सेशन न्यायधीश के समक्ष अपील पेश की जिसमे भी , दोनों पक्षों की तरफ से बहस हुई , बहस के दौरान , 1724 से 1756 तक महाराव दुर्जनसाल जी के कार्यकाल में राजकीय संवारियाँ निकालने की परम्परा का भी ज़िक्र सामने आया , जबकि इस अवसर पर छोटा पशु मेला लगाए जाने का भी तथ्य सामने आया , अपील में भी इसे शोध एवं साक्ष्य का बिंदु मानकर अस्वीकार करते हुए , मेला दशहरा शुभारम्भ होने , शताब्दी वर्ष के कार्यक्रम शुरू होने , प्रचार प्रसार हो जाने के कारण अपील भी , ख़ारिज कर दी गई , अब इस मामले में , कोटा में मेला दशहरा का इतिहास किस तिथि किस वर्ष से शुरू हुआ , वोह अभी भी , रिसर्च और साक्ष्य का विषय होने से इतिहासविदों के शोध की प्रतीक्षा में है , कोटा की आम जनता आज भी वायली फेयर जो उम्मेद क्लब के बाहर अँगरेज़ की पत्नी ने शुरू किया था , उस वायली फेयर को कोटा मेला दशहरे का शुभारम्भ वर्ष कहा जाए , या फिर महाराव उम्मेद सिंह जी द्वितीय ने जो वर्तमान मेला प्रांगण में 1932 में वर्तमान मेला स्थल पर मेले और दशहरे की शुरुआत की उसे स्थापित वर्ष माना जाए ,, ,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान 9829086339

सिंधी समाज की दो महिलाओं का निधन, नैत्रदान सम्पन्न

 सिंधी समाज की दो महिलाओं का निधन, नैत्रदान सम्पन्न

शॉपिंग सेंटर गुमानपुरा निवासी गोपीचंद आहूजा की धर्मपत्नी कविता आहूजा का आकस्मिक निधन हुआ इसके उपरांत उनके जेठ डॉ धनराज,डॉ जयप्रकाश और देवर डॉ घनश्याम, हीरा,धर्मपाल,ललित ने बेटे भरत से सहमति लेकर शाइन इंडिया फाउंडेशन के डॉ कुलवंत गौड़ को संपर्क कर नेत्रदान का कार्य संपन्न करवाया । 


कविता इतने बड़े परिवार में सभी के काम आने वाली खुश-मिजाज और सेवाभावी महिला थी,अचानक इस तरह की दुखी घटना होने से परिवार के सभी सदस्यों को काफी दुख पहुंचा । परंतु प्रारंभ से ही नेत्रदान के कार्य से जुड़े रहने के कारण यह पुनीत कार्य परिवार की ओर से संपन्न हुआ । ज्ञात होगी कुछ समय पहले उनकी सासू माँ भागी बाई का भी नेत्रदान संपन्न हुआ था ।


इसी नैत्रदान के ठीक बाद सिंधी समाज के व्हाट्सएप ग्रुप में शक्ति नगर निवासी माया देवी अछडा के निधन की सूचना आयी, डॉ गौड़ ने तुरंत ही करीबी रिश्तेदार डॉ कल्पित रोहिड़ा  को संपर्क किया । बेटे नरेश, गौरव बेटी भारती से सहमति मिलते ही परिजनों के बीच में नैत्रदान की प्रक्रिया संपन्न हुई ।

और (उलटे) कहने लगे कि आपने माबूदों को हरगिज़ न छोड़ना और न वद को और सुआ को और न यगूस और यऊक़ व नस्र को छोड़ना

 फिर) नूह ने अर्ज़ की परवरदिगार इन लोगों ने मेरी नाफ़रमानी की उस शख़्स के ताबेदार बन के जिसने उनके माल और औलाद में नुक़सान के सिवा फ़ायदा न पहुँचाया (21)
और उन्होंने (मेरे साथ) बड़ी मक्कारियाँ की (22)
और (उलटे) कहने लगे कि आपने माबूदों को हरगिज़ न छोड़ना और न वद को और सुआ को और न यगूस और यऊक़ व नस्र को छोड़ना (23)
और उन्होंने बहुतेरों को गुमराह कर छोड़ा (24)
और तू (उन) ज़ालिमों की गुमराही को और बढ़ा दे (25)
(आखि़र) वह अपने गुनाहों की बदौलत (पहले तो) डुबाए गए फिर जहन्नुम में झोंके गए तो उन लोगों ने ख़ुदा के सिवा किसी को अपना मददगार न पाया (26)
और नूह ने अर्ज़ की परवरदिगार (इन) काफि़रों में रूए ज़मीन पर किसी को बसा हुआ न रहने दे (27)
क्योंकि अगर तू उनको छोड़ देगा तो ये (फिर) तेरे बन्दों को गुमराह करेंगे और उनकी औलाद भी गुनाहगार और कट्टी काफ़िर ही होगी (28)
परवरदिगार मुझको और मेरे माँ बाप को और जो मोमिन मेरे घर में आए उनको और तमाम ईमानदार मर्दों और मोमिन औरतों को बख़्ष दे और (इन) ज़ालिमों की बस तबाही को और ज़्यादा कर (29)

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