सूरए अल मोमिनून
सूरए अल मोमिनून मक्का में नाजि़ल हुआ और इसमें एक सौ अठारह आयतें और 6 रुकुउ हैं
खुदा के नाम से शुरु करता हूँ जो बड़ा मेहरबान रहम वाला है
अलबत्ता वह इमान लाने वाले रस्तगार हुए (1)
जो अपनी नमाज़ों में (खुदा के सामने) गिड़गिड़ाते हैं (2)
और जो बेहूदा बातों से मुँह फेरे रहते हैं (3)
और जो ज़कात (अदा) किया करते हैं (4)
और जो (अपनी) शर्मगाहों को (हराम से) बचाते हैं (5)
मगर अपनी बीबियों से या अपनी ज़र ख़रीद लौनडियों से कि उन पर हरगिज़ इल्ज़ाम नहीं हो सकता (6)
पस जो शख़्स उसके सिवा किसी और तरीके़ से शहवत परस्ती की तमन्ना करे तो ऐसे ही लोग हद से बढ़ जाने वाले हैं (7)
और जो अपनी अमानतों और अपने एहद का लिहाज़ रखते हैं (8)
और जो अपनी नमाज़ों की पाबन्दी करते हैं (9)
(आदमी की औलाद में) यही लोग सच्चे वारिस है (10)
खुदा के नाम से शुरु करता हूँ जो बड़ा मेहरबान रहम वाला है
अलबत्ता वह इमान लाने वाले रस्तगार हुए (1)
जो अपनी नमाज़ों में (खुदा के सामने) गिड़गिड़ाते हैं (2)
और जो बेहूदा बातों से मुँह फेरे रहते हैं (3)
और जो ज़कात (अदा) किया करते हैं (4)
और जो (अपनी) शर्मगाहों को (हराम से) बचाते हैं (5)
मगर अपनी बीबियों से या अपनी ज़र ख़रीद लौनडियों से कि उन पर हरगिज़ इल्ज़ाम नहीं हो सकता (6)
पस जो शख़्स उसके सिवा किसी और तरीके़ से शहवत परस्ती की तमन्ना करे तो ऐसे ही लोग हद से बढ़ जाने वाले हैं (7)
और जो अपनी अमानतों और अपने एहद का लिहाज़ रखते हैं (8)
और जो अपनी नमाज़ों की पाबन्दी करते हैं (9)
(आदमी की औलाद में) यही लोग सच्चे वारिस है (10)
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