मेरे बहते हुए
आँख के आंसुओं को
यूँ ही सुखा गया कोई ।
मेरे रिश्ते हुए
जख्मों को
यूँ ही मरहम लगा गया कोई
एक चली आंधी
और मेरे गम और आंसुओं को
उढ़ा ले गया कोई
मेरे उदास चेरे पर
मुस्कुराहट सजा गया कोई
यूँ ही
मुझ रोते हुए को
हंसा गया कोई
सोचता हूँ
इस जहां में तो
यह शख्स जरुर
फरिश्ता ही होगा ...............................अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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