आपका-अख्तर खान

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22 अक्तूबर 2011

कुरान का संदेश

1 टिप्पणी:

  1. Nice message .
    सारी धरती एक देश है
    धरती एक राज्य है और इस धरती पर आबाद मनुष्य एक विशाल परिवार हैं।
    राजनीतिक सीमाएं आर्टीफ़ीशियल हैं। यही वजह है कि ये हमेशा बदलती रहती हैं। ये केवल फ़र्ज़ी ही नहीं हैं बल्कि ग़ैर ज़रूरी भी हैं। किसी देश के पास आबादी कम है लेकिन उसने ताक़त के बल पर ज़्यादा ज़मीन और ज़्यादा साधन हथिया लिए हैं जबकि किसी देश के पास आबादी ज़्यादा है और उसके पास ज़मीन और साधन कम रह गए हैं।
    राजनीतिक सीमाएं अपने पड़ोसी देशों के प्रति शक भी बनाए रखती हैं जिसके कारण अपनी रक्षा के लिए विनाशकारी हथियार बनाने पड़ते हैं या बने बनाए ख़रीदने पड़ते हैं। इस तरह जो पैदा रोटी, शिक्षा और इलाज पर लगना चाहिए था वह हथियारों पर ख़र्च हो जाता है।
    चीज़ें अपने इस्तेमाल के लिए कुलबुलाती भी हैं। हथियार कुलबुलाते हैं तो जंग होती है और इस तरह पहले से बंटी हुई धरती और ज़्यादा बंट जाती है और पहले से ही कमज़ोर मानवता और ज़्यादा कमज़ोर हो जाती है।
    काला बाज़ारी, टैक्स चोरी, रिश्वतख़ोरी, विदेशों में धन जमा करना, जुआ, शराब और फ़िज़ूलख़र्ची के चलते हालात और ज़्यादा ख़राब हो जाते हैं। लोगों की सोच बिगड़ जाती है। लोग अपनी आदतें और अपनी व्यवस्था बदलने के बजाय इंसान को ही प्रॉब्लम घोषित कर देते हैं।
    इंसान की पैदाइश पर रोक लगा दी जाती है।
    निरोध, गर्भ निरोधक गोलियां और अबॉर्शन की सुविधा आम हो जाती है और नतीजा यह होता है कि केवल विवाहित जोड़े ही नहीं बल्कि अविवाहित युवक युवती भी सेक्स का लुत्फ़ उठाने लगते हैं। मूल्यों का पतन हो जाता है और इसे नाम आज़ादी का दे दिया जाता है।
    लोग दहेज लेना नहीं छोड़ते लेकिन गर्भ में ही कन्या भ्रूण को मारना ज़रूर शुरू कर देते हैं। लिंगानुपात गड़बड़ा जाता है। जिन समाजों में बच्चों की पैदाइश को नियंत्रित कर लिया जाता है वहां बूढ़ों की तादाद ज़्यादा और जवानों की तादाद कम हो जाती है। बूढ़े रिटायर होते हैं तो उनकी जगह लेने के लिए उनके देश से कोई जवान नहीं आता बल्कि उनकी जगह विदेशी जवान लेने लगते हैं। देश अपने हाथों से निकलता देखकर वे फिर अपनी योजना को उल्टा करने की घोषणा करते हैं लेकिन तब तक उनकी नौजवान नस्ल को औलाद से आज़ादी का चस्का लग चुका होता है।
    चीज़ बढ़ती है तो वह क़ायम रहती है और जो चीज़ बढ़ती नहीं है वह लाज़िमी तौर पर घटेगी ही और जो चीज़ घटती है वह ज़रूर मिट कर रहती है।
    ताज्जुब है कि लोग बढ़ने को बुरा मानते हैं और नहीं जानते कि ऐसा करके वे अपने विनाश को न्यौता दे रहे हैं।
    विनाश के मार्ग को पसंद करने वाले आजकल बुद्धिजीवी माने जाते हैं।
    मानव जाति को बांटने वाले और विनाशकारी हथियार बनाने वाले भी यही बुद्धिजीवी हैं।
    मानव जाति की एकता और राजनैतिक सीमाओं के बिना एक धरती पर केवल एक राज्य इनकी कल्पना से न जाने क्यों सदा परे ही रहता है ?
    जो कि मानव जाति की सारी समस्याओं का सच्चा समाधान है।

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