दौर-ए-इलेक्शन मे कहाँ कोई इंसान नजर आता है,
कोई हिन्दू कोई दलित तो कोई मुसलमान नजर आता है.,,कोई अपने मुफाद के लिए मर्यादाएं तोड़कर इस पार्टी से उस पार्टी में तो उस पार्टी से इस पार्टी में आता है ,, सियासी पार्टियां तोड़ती है खुद का कोल ,, खुद का विधान ,, तीन साल के सदस्य को टिकिट देने का विधान सेकंडों में टूट जाता है ,,
बीत जाता है जब इलाकों मे इलेक्शन का है यह दौर ...
तब हर शख्स रोटी के लिये परेशान नजर आता ,,अख्तर
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