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15 जून 2011

संवेदनहीनता की पराकाष्ठा पार हो गयी है

किसी गीतकार ने लिखा है के खुदा भी आसमा से जब देखता होगा मेरे महबूब को किसने बनाया सोचता होगा वोह लेने इन दिनों महात्मा गाँधी आदरणीय  बापू के आज़ाद देश में कुछ इस तरह से पढ़ी जा रही है के गांधी भी जब आसमा से देखता होगा मेरे देश को मेने आज़ाद क्यूँ कराया सोचता होगा जी हाँ यह सच है एक लोकतंत्र की आज दुर्गति हो रही है वोह किसी तानाशाह राज में भी तानाशाही की नहीं हुई है कानून कायदे देश की स्वतन्त्रता और देश के मान सम्मान को ताक में रख कर संवेदनहीनता की पराकाष्ठा पार हो गयी है ...भारत में अंग्रेजों के वक़्त पर जब जब गांधी ने अनशन का हथियार चलाया बेदर्द अँगरेज़ सरकार भी उनके इस हथियार के आगे झुक गयी है लेकिन हाल ही में बाबा रामदेव के अनशन , अन्ना के अनशन और फिर स्वामी निगमानंद के अनशन ने भारत के अनशन की राजनीती को तहस नहस कर दिया है .......हिंसा की तरफ बढ़ रहा भारत देश महात्माओं के साथ अहिंसा की तरफ बढ़ रहा था और लाठी भाटा चक्का जम की  भाषा भुला कर फिर से अनशन के रस्ते पर था लेकिन अहिंसा का रास्ता अपनाकर उन्हें क्या मिला स्वामी निमानंद को म़ोत मिली , बाबा रामदेव को अपमान और अन्ना हजारे को बीच में लटका दिया गया ....एक तरफ देश की जनता के करोड़ों करोड़ लोगों का राष्ट्रहित में चलाया गया आन्दोलन और दूसरी तरफ राजस्थान में गुजरों का आन्दोलन अगर दोनों को हम देखें तो सरकार हिंसा के आगे झुकी गुर्जरों ने जनता का जीना दुश्वार किया करोड़ों करोड़ की सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाया कानून तोड़ा रास्ते जाम किये उनका सरकार ने कुछ नहीं बिगाड़ा और उनसे वार्ता कर सरकार ने मोके पर अपने मंत्रियों को भेजा उन्हें मुख्यमंत्री ने बुलाया तो एक तरफ हमारा गांधीवादी अनशन और दूसरी तरफ हिन्संक आन्दोलन दोनों में से जीत हिंसक आन्दोलन की हुई गांधीवादी आन्दोलन कारियों की हार ही हुई है अपमान ही हुआ है ऐसे में देश फिर से नक्सली आन्दोलन की तरफ बढ़ेगा हिंसा की तरफ बढ़ेगा ....तो दोस्तों जहाँ गांधी के अनशन को दुत्कारा जाता हो जहाँ हिंसा को अपनाकर उसके आगे सर झुकाया जाता हो आज क्या वोह गाँधी का आज़ाद भारत है सोच कर भी शर्म आती है .......अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान  

1 टिप्पणी:

  1. आपका कहना बिल्कुल सही है…………अब तो जनता ही हथियार उठायेगी तभी सरकार को समझ आयेगी नही तो यूँ ही पिसती जायेगी।

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