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02 जुलाई 2022

परमवीर चक्र , वीर शहीद अब्दुल हमीद के जन्म दिंवस समारोह पर विशेष

 परमवीर चक्र , वीर शहीद  अब्दुल हमीद के जन्म दिंवस समारोह पर विशेष , , कोटा की ख़ुशक़िस्मती है , के कोटा शिक्षा नगरी में , एलेन कोचिंग कॉलेज में  , एक तरफ तो , ,बिहार के बाल गोपाल सोनू , को , आई ऐ एस बनाने के लिए, एलेन मालिक अपने खर्चे पर , कोटा में , शैक्षणिक व्यवस्था सहित सभी सुविधाओं के साथ व्यवस्थाएं दे रहें है , जबकि ,, इस कोटा की सर ज़मीन पर , एलेन कोचिंग कॉलेज में , वीर अब्दुल हमीद परमवीर चक्र के  पड़ पोते ,, आकिब जावेद कोटा में ही रहकर कोचिंग ले रहे है , अल्लाह सोनू , और आकिब जावेद को , कामयाब करे ,, यक़ीनन एलेन कोचिंग कॉलेज , कोचिंग गुरु के रूप में , सोनू को समस्त सुविधा खर्च के साथ , उनके आई ऐ एस बनने की चाहत के मार्गदर्शक है , इधर आकिब जावेद भी , उनके पिता डॉक्टर जावेद की तरह ही , डॉक्टर बनने की कोशिशों में कोटा एलेन में , कोचिंग के लिए आये है , , एलेन कोचिंग गुरु से इस मामले में, वीर अब्दुल हमीद के पोते होने की बात कहकर , उनकी शहादत के सम्मान में ,,, कोचिंग शुल्क में , जो भी छूट दिया जाना सम्भव हो सके , ऐसा निवेदन किया था , लेकिन सिस्टम में चूक होने से , आक़िब जावेद ने , कोचिंग की पूरी फीस जो भी बनती थी , जमा करा दी , इसकी जानकारी मिलते ही , जब कोचिंग गुरु को अवगत कराया , तो उन्होंने , तुरंत , आकिब जावेद के साथ आये उनके वालिद , डॉक्टर जावेद , के नंबर लेकर उनसे सम्पर्क किया,, बात की, एक बार फीस जमा होने के बाद , रियायत टेक्निकली शायद सम्भव नहीं थी , फिर भी उन्होंने , स्कॉलर शिप पुनर्भरण व्यवस्था में , भविष्य में वीर अब्दुल हमीद के सम्मान में कुछ रियायत की संभावना तलाशी है ,, खेर कोटा की सर ज़मीन , कोचिंग सिटी में , परमवीर चक्र ,वीर अब्दुल हमीद के परिवार के लोग , पढ़ रहे है , यह हमारे लिए गर्व की बात है , फीस जमा होना , पुनर्भरण होना कोई मायने नहीं रखती , ,इधर , वीर अब्दुल हमीद की शहादत के दिन हर साल , कोटा में ,  परमवीर चक्र वीर अब्दुल हमीद क़ौमी एकता सद्भाविक मंच की तरफ , कार्य्रकम आयोजित किये जाते रहे है , वीर अब्दुल हमीद का एक जुलाई को ,   उनके गाँव सहित ,देश भर में ,उनके जन्म दिन पर , कई कार्यक्रम आयोजित किये गये , इसी क्रम में , कोटा में भी ,  परमवीर चक्र , वीर अब्दुल हमीद क़ौमी एकता सद्भाविक मंच , की तरफ से ,, आपसी भाईचारा , सद्भाव , अमन सुकून का माहौल बनाकर , इस कोटा शहर की कोचिंग सिटी ,, पर्यटन नगरी , में जो , प्यार मोहब्बत का भरोसा , है , दो साल की , कोरोना तकलीफों के बाद , फिर से  कोटा में जो खुशहाली , लौटकर आयी है , व्यापरियों , हॉस्टल व्यवसाइयों , ऑटो चालक , होटल संचालक , सहित ठेले , खोमचे , घर घर पेइंग गेस्ट से रोज़गार चला रहे लोगों के चेहरे पर जो हंसी है , उसको किसी की नज़र ना लगे , इसीलिए , हर वर्ग में , समझाइश के कार्य्रक्रम रखे गए , सद्भाविक मंच के संयोजक एडवोकेट  अख्तर खान अकेला ने कहा , के जब , परमवीर चक्र अब्दुल हमीद , हमारे देश की खुशहाली , तरक़्क़ी , सुरक्षा के लिए,  दुश्मन के टेंक उढ़ाकर , अपने प्राणों की आहुति दे सकते है , तो फिर हम हमारे कोटा शहर , हमारे राजस्थान , हमारे देश की सुरक्षा , अस्मिता , खुशहाली , रोज़गारोन्मुखी योजनाओं के लिए , हम भाईचारा सद्भावना क़ायम क्यों नहीं रख सकते ,, सद्भाविक मंच के , संरक्षक , एडवोकेट ब्रह्ममानन्द शर्मा ने कहा , की कुछ गिनती के लोग , जो अपनी सियासी रोटियों को सेंकने , मुद्दों को भटकाने , राजनितिक फायदे के लिए , नफरत का माहोल बनाते हैं , ऐसे लोग कुछ मुट्ठीभर है , उनकी पहचान कर, राष्ट्रहित में उनका बहिष्कार करना , आपराधिक कृत्य , नफरत के लिए उकसावे ,भड़कावे की शिकायत आने पर , ऐसे लोग चाहे किसी भी धर्म , मज़हब , समुदाय, सियासी पार्टी के हों , उन्हें सबक़ सिखाने के लिए जेल भेजना ज़रूरी है ,, नवीन अग्रवाल ने कहा , के नूपुर शर्मा के मामले में , सुप्रीम कोर्ट का जो आदेश है , वोह इस समाज , इस देश के सिस्टम को आयना दिखाने वाला इसलिए क़ानून से बढ़ा कोई नहीं , ,सभी को मिलजुलकर तरक़्क़ी के प्रयासों के साथ खुशहाल रहना है, यही , परमवीर चक्र अब्दुल हमीद को सच्ची श्रद्धांजलि होंगी,, ,,कोटा में उनके पुत्र  डॉक्टर जावेद , बढे पुत्र ,, ज़ैनुल हसन कोटा  आते रहे है ,, जिनके साथ, कांग्रेस के युवा नेता आसिफ मिर्ज़ा , अख्तर खान अकेला और साथियों की , खुशनुमा यादें बनी हुई है, अब्दुल हमीद की बहादुरी को लेकर मुंबई में , एक फिल्म ,, बनाई जा रही है ,उनके पुत्र ज़ैनुल हैं ने , इस मामले में अपनी स्वीकृति दे दी है ,, ,,,,,
वीर अब्दुल हमीद: 1965 के भारत-पाक युद्ध में हुए थे शहीद, परिवार से छिपाई थी युद्ध शुरू होने की बात
उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के एक मामूली परिवार में एक जुलाई 1933 को जन्मे वीर अब्दुल हमीद के वीरता की गाथा शब्दों में नहीं पिरोई जा सकती। क्योंकि 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान वीर अब्दुल हमीद ने न सिर्फ पाकिस्तानी दुश्मनों के दांत खट्टे किए, बल्कि पाक के सात पैटर्न टैंकों के परखच्चे उड़ा दिए। इसी दौरान वह दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गए।
परिवार वाले बताते हैं कि पाकिस्तान से युद्ध के दौरान घर से निकलते ही अब्दुल हमीद के साथ अपशगुन हुआ था। पिता ने रोका, लेकिन वह नहीं रुके। उन्होंने उस दौरान अपनी पत्नी से सिर्फ यही कहा था, ''तुम बच्चों का ख्याल रखना, अल्लाह ने चाहा तो जल्द मुलाकात होगी।
शहीद वीर अब्दुल हमीद के पिता अपने क्षेत्र के पहलवानों में गिने जाते थे, लेकिन गरीबी की वजह से आजीविका के लिए वह सिलाई का काम करते थे। बेहद तंगी की हालत में पहलवान मोहम्मद उस्मान खलीफा ने अपने बड़े बेटे वीर अब्दुल हमीद को किसी तरह 5वीं तक की पढ़ाई पूरी करवाई।
लोग बताते है कि अब्दुल हमीद का मन भले ही पढ़ने में न लगता हो, लेकिन स्कूल जाते समय वह गांव के अन्य बच्चों को भी पकड़कर स्कूल पहुंचाते थे। वह चाहते थे कि गांव के सभी बच्चे अच्छी शिक्षा पाए। अब्दुल हमीद ने 27 दिसंबर 1954 को भारतीय सेना में सैनिक के रूप में देश सेवा शुरू की।
सेना में भर्ती होने के बाद सबसे पहली बार 1962 में भारत-चीन युद्ध में अब्दुल हमीद ने अपनी वीरता दिखाई। गोलियों से घायल होने के बावजूद घुटनों और कोहनियों के बल पर चलते हुए अब्दुल ने चीन द्वारा कब्जा किए गए 14-15 किलोमीटर एरिया को क्रॉस करते हुए भारत-चीन के ओरिजिनल बॉर्डर पर तिरंगा लहराया था।
युद्ध के दौरान भारतीय सेना को पता नहीं था कि अब्दुल हमीद जिंदा हैं। युद्ध खत्म होने के बाद जब पीछे से गई सेना की टुकड़ियों ने सैनिकों को शाम को बटोरना शुरू किया तो उन्हीं के बीच घायल हालत में अब्दुल हमीद मिले। वीरता को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें नेशनल सेना मेडल दिया।
थल सेना में तैनात अब्दुल हमीद जब 33 साल के थे। 1965 की भारत-पाक जंग के दौरान दुश्मन देश की फौज ने अभेद पैटर्न टैंकों के साथ 10 सितंबर को पंजाब प्रांत के खेमकरन सेक्टर में हमला बोला। भारतीय थल सेना की चौथी बटालियन की ग्रेनेडियर यूनिट में तैनात कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद अपनी जीप में सवार दुश्मन फौज को रोकने के लिए आगे बढ़े।
पैटर्न टैंकों का ग्रेनेड के जरिए सामना करना शुरू कर दिया। दुश्मन फौज हैरत में पड़ गई और भीषण गोलाबारी के बीच पलक झपकते ही अब्दुल हमीद के अचूक निशाने ने पाक सेना के पहले पैटर्न टैंक के परखच्चे उड़ा दिए। मोर्चा संभाले अब्दुल हमीद ने पाक फौज की अग्रिम पंक्ति के सात पैटर्न टैंकों को चंद मिनटों मे ही धराशायी कर डाला।
पाक फौज के पैटर्न टैंकों से निकला एक गोला अब्दुल हमीद की जीप पर आ गिरा। देश की सरहद की सुरक्षा मे तैनात गाजीपुर के इस लाल ने सन 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान न सिर्फ दुश्मन देश के 7 पैटर्न टैंकों के परखच्चे उड़ाकर पाक सेना के दांत खट्टे कर दिए, बल्कि वतन की रक्षा करते हुए अपनी जान की कुर्बानी दे दी।
भारत-पाक के बीच 1965 में युद्ध छिड़ा। उस समय अब्दुल हमीद छुट्टियों में घर आए हुए थे। रेडियो पर सूचना मिलते ही उन्होंने पिता से छिपाते हुए सिर्फ पत्नी रसूलन बीबी से कहा, ''मेरी छुट्टियां खत्म हो गई हैं और मुझे वापस जाना होगा।''
परिवार से युद्ध शुरू होने की बात छिपाई :
वीर अब्दुल हमीद ने पूरे परिवार से युद्ध शुरू होने की बात छिपा दी। ताकि उन्हें जाने से कोई रोक न पाए। उन्होंने चुपके से अपना सामान पैक करना शुरू कर दिया। अब्दुल के वापस जाने की सूचना सिर्फ उनकी पत्नी रसूलन बीबी और दोस्त बच्चा सिंह को थी।
तब उन्होंने अपने दोस्त से कहा कि वह भोर में चुपके से साइकिल लेकर घर के बाहर आ जाए, ताकि कुछ सामान रेलवे स्टेशन तक पहुंचाया जा सके। लेकिन सुबह निकलते वक्त सब लोग इस रहस्य को जान गए। तब अब्दुल हमीद ने कहा था, अपना देश भी तो परिवार है।
और रसूलन बीबी को प्रदान किया गया परमवीर चक्र
1965 के भारत-पाक युद्ध में वीर अब्दुल हमीद की शहादत के एक हफ्ते बाद 16 सितंबर 1965 को भारत सरकार ने देश का सर्वोच्च सैनिक सम्मान परमवीर चक्र देने की घोषणा की। 26 जनवरी 1966 गणतंत्र दिवस पर तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने वीर अब्दुल हमीद की पत्नी रसूलन बीबी को परमवीर चक्र प्रदान किया।
फिल्मकार चेतन आनंद द्वारा बनाए गए टीवी सीरियल परमवीर चक्र विजेता में मशहूर कलाकार नसीरुद्दीन शाह ने अब्दुल हमीद की भूमिका निभाई है। जबकि, आर्मी पोस्टल सर्विस की ओर से वीर अब्दुल हमीद की स्मृति में 10 सितंबर 1979 और 28 जनवरी 2000 को डाक टिकट जारी किए गए।

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