अजीब लोग थे वो तितलियां बनाते थे
समुंदरों के लिए मछलियां बनाते थे
मेरे क़बीले में तालीम का रिवाज़ न था
मेरे बुज़ुर्ग मगर तख़्तियां बनाते थे
वही बनाते थे लोहे को तोड़कर ताला
फिर उसके बाद वही चाबियां बनाते थे
फ़िज़ूल वक़्त में वह सारे शीशागर मिलकर
सुहागिनों के लिए चूड़ियाँ बनाते थे
हमारे गाँव में दो-चार हिंदू दर्ज़ी थे
नमाज़ियों के लिए टोपियाँ बनाते थे
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