फिल्म जोली एल एल बी टू ,,देश की न्यायिक व्यवस्था का मज़ाक़ उड़ाने के लिए
बनाई गयी फिल्म लगती है ,,देश के ज़िम्मेदार वकील ,,देश के सेवानिव्रत
न्यायधीषों को इस फिल्म में अदालत ,,अदालतों के जजो के कामकाज के तरीक़ो का
प्रदर्शन सीधा सीधा न्यायालय की अवमानना का अपराध लगता है ,,ताज्जुब है
फिल्म सेंसर बोर्ड ने ऐसी अपमानकारी ,,काल्पनिक न्यायिक व्यवस्था का मज़ाक़
उड़ाने वाली फिल्म के प्रदर्शन की इजाज़त कैसे दी है ,,वैसे फिल्म सेंसर
बोर्ड में वरिष्ठ वकील को भी सदस्य बनाया जाना अनिवार्य हो गया है
,,वैसे फिल्म सेंसर बोर्ड और सम्बन्धित फिल्म कलाकारों ,,लेखको ,,डायलॉग
लिखने और बोलने वालों को ,,सो मोटो प्रसंज्ञान लेकर ,,सुप्रीमकोर्ट को इस
मामले में जवाब तलब कर ,,सेंसर बोर्ड के सदस्यो की नियुक्ति और उनकी
ज़िम्मेदारी तय करने के लिए ,,एक गाइड लाइन जारी करना अनिवार्य हो गया है
,,क्योंकि फिल्म सेंसर बोर्ड में अब समझदार लोग जो सभी क़ानूनी,,सामजिक
बिन्दुओ और ,,सँवैधानिक मर्यादाओ को ध्यान में रखकर फिल्मो की कहानी और
द्र्श्य को पास करते है वोह ज़माना नहीं रहा ,,यहाँ तो सरकार का जो सबसे बढ़ा
चमचा नम्बर वन होता है उसे सेंसर बोर्ड में नियुक्त कर दिया जाता है
,,इसीलिए इस तरह की भद्दी और ,भारत की न्यायपालिका ,,संविधान का मज़ाक़
उढाकर आम जनता में अदालतों का सम्मान कम करने वाली फिल्मो के बेहूदा
प्रदर्शन की इजाज़त दी गई है ,,जिसमे वकील और जजो के किरदार को अपमानकारी
व्यवस्था के साथ प्रदर्शित किया गया है ,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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